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208/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन दोहडिका :
जिस छन्द में प्रथम और तृतीय चरण में तेरह मात्राएँ हों तथा लघु पर विराम हो और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में ग्यारह मात्राएँ हों उसे दोहडिका (दोहा) छन्द कहते हैं । यथा
"सत्करोमि यत् पदयुगं सन्निधिरयमिहनाम् । मम कर्मासन्निवृतं समधिगतं ललाम ॥69
शेष छन्दों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है अतः उनकी आवृत्ति दोष की परिचायिका होगी।
इक्कीसवें सर्ग में रथोद्धता, सुन्दरी, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा, भुजङ्गप्रयात, पज्झटिका, आर्या, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बित प्रभृति छन्दों में वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित वृत्त द्वारा सर्ग की समाप्ति की गयी है। ____ बाइसवें सर्ग में पज्झटिका, अनुष्टुप्, इन्द्रवंशा, दोहडिका, उपजाति और अन्त में शार्दूलविक्रीडित का आश्रय लेकर वर्णन किया गया है ।
तेइसवें सर्ग में वंशस्थ, उपजाति, इन्द्रवज्रा, वसन्ततिलक, शार्दूलविक्रीडित, द्रुतविलम्बित, पज्झटिका, उपेन्द्रवज्रा, सुन्दरी, अनुष्टुप् आर्या प्रभृति छन्दों से वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित वृत्त से सर्ग का अवसान किया गया है।
चौबीसवें सर्ग का आरम्भ वंशस्थ छन्द से शुरू कर नब्बे श्लोक पर्यन्त वर्णन किया गया है । ततः उपजाति, अनुष्टुप्, आर्या, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, सुन्दरी, वंशस्थ, शार्दूलविक्रीडित, द्रुतविलम्बित, वसन्ततिलका प्रभृति छन्दों से वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित द्वारा सर्ग की समाप्ति की गयी है। __पच्चीसवें सर्ग में द्रुतविलम्बित, सुन्दरी, शार्दूलविक्रीडित प्रभृति छन्दों से वर्णन कर सर्ग की समाप्ति की गयी है । सर्ग समाप्ति के पश्चात् पाँच श्लोकों से भजनगीत भी दिखाया गया है, जिसमें सर्ग के भीतर के श्लोक भी आये हुए हैं ।
छब्बीसवें सर्ग में सुन्दरी, मालिनी, वंशस्थ, वसन्ततिलका, अनुष्टुप्, उपजाति छन्दों का वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित छन्द से सर्ग की समाप्ति की गयी है।
सत्ताइसवें सर्ग में उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, इन्द्रवज्रा, वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, वसन्ततिलका, रथोद्धता प्रभृति छन्दों से वर्णन कर शार्दूलविक्रीडित छन्द से सर्ग की समाप्ति की गयी है
अट्ठाइसवें सर्ग में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग आरम्भ से लेकर श्लोक संख्या साठ पर्यन्त अव्यवहित किया गया है । ततः रथोद्धता, दोधक, सुन्दरी, शार्दूलविक्रीडित, इन्द्रवज्रा, आर्या, मालिनी, पज्झटिका प्रभृति छन्दों का प्रयोग कर शार्दूलविक्रीडित वृत्त से सर्ग का पर्यवसान किया गया है । सभी छन्दों का ऊपर वर्णन किया जा चुका है । शेष एक दोधक छन्द का लक्षण एवं उदाहरण दृष्टव्य है -