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156/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन तथा सम्मुख (दण्डवत्) आदि प्रणाम प्रक्रियाओं के द्वारा वक्षस्थल को भी धुलि से अलङ्कत करे तथा मन्त्रों के फुत्कार द्वारा अर्थात् मन्त्र दीक्षा द्वारा कर्ण पाली (कर्ण पंक्ति) को पवित्र करें । जो अभी मननशील एवं जितेन्द्रिय नहीं हैं उनके लिये यह पद्धति बतलायी गयी है।
अपराधयुक्त व्यक्ति गुरु के समीप पहुँचने के लिये यत्नशील होता हुआ भी पन्द्रह दिन या एक माह पर्यन्त उद्योग तत्पर होकर सुन्दर बुद्धि को पाकर लेश्या विशुद्धि प्राप्त करता है । उस स्थिति में भिक्षा चरण के द्वारा निर्वाह कर अन्त:करण को निर्मल बनाया जाता है । यह भैक्ष शुद्धि अपराध का उत्पादक नहीं होता है । यह गृहस्थ जीवन से ऊपर उठने वाले व्यक्ति के लिये कहा गया है । यथा
"आपक्षमासं व्रजतोऽपि मन्तुर्गुरूनुरूद्योगपरोऽपि गन्तुम् । लेश्याविशुद्धिं लभते सुबुद्धि वापराध्यत्यपि भैक्ष्यशुद्धिम् ॥3
शरीर के प्रति घृणा बुद्धि उत्पन्न कर एकान्त सेवन की ओर बल दिया गया है । जो इसी सर्ग के आगे के श्लोक से अभिव्यक्त है
"शरीरमात्रं मलमूत्रकूण्डं समीक्षमाणोऽपि मलादिझुण्डम् । त्यजेदजेतव्यतया विरोध्यमेकान्तमेकान्ततया विशोध्य ॥194
इस पद्य में यह कहा गया है कि मल-मूत्र का पात्र सारा शरीर है। यह विचार करते हुए भी किन्तु जीतने की क्षमता न होने के कारण एकान्त में मन से विचार कर निश्चल रूप से विरोद्योत्पादक वस्तुओं का परित्याग करें ।
इसी प्रकार शान्त को उत्कृष्ट बनाने के लिये ही आगे के श्लोकों में उसके साधन इस प्रकार बताये गये हैं कि जिस प्रकार पत्नी को ग्रहण किया जाता है उसी के सदृश परिश्रममात्र से प्राप्त उपकरण के द्वारा जीवन निर्वाह करना उचित होता है । इस शरीर को जलते हुए कुटीर के समान समझना चाहिए एवं आपत्ति काल में भी आसक्तिहीन होकर इसको छोड़ने के लिये उत्सुक होना चाहिए । यथा -
"श्रमैकसम्वाहि किलाभिजल्पन्विनिर्वहत्यात्तकलत्रकल्पः । ज्वलत्कुटीरोपममेतदङ्ग मापत्क्षणे मोक्तु मुदेत्यसङ्गः ॥95 इस श्लोक द्वारा एकान्त निवास एवं शरीर के प्रति अनास्था उत्पन्न करायी गयी है।
सर्ग की समाप्ति में यह लक्ष्य बताया गया है कि सत्कर्तव्य मार्ग का उपदेश करना, अपवर्ग अर्थात् नित्य सुख-निश्चल शान्ति को प्राप्त करने के लिये साधन हैं ।
"सदाचारविहीनोऽपि सदाचारपरायणः । स राजापि तपस्वी. सन् समक्षोऽप्यक्षरोधकः ॥ अर्थात् यह गुप्तचर एवं दूतों से सदा के लिये रहित हुआ तथा सज्जनों के किये गये