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98 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
अनुसरण किया है, यही यथार्थ भी है। क्योंकि काव्य में शरीर की अपेक्षा आत्मा या प्राण ही प्रधान है। लोक में भी जीव की ही प्रधानता देखी जाती है, शरीर की नहीं । अचेतन शव शरीर कभी भी अलङ्कृत नहीं किया जाता । अतः प्राधान्येन रसादि ही अलङ्कार्य है और उसे शब्दार्थ शरीर माध्यम से उपमादि अङ्गतया अलङ्कृत करते हैं।
आचार्यों ने शब्दार्थोमयगत भेद से प्रधानतः तीन भेदों में अलंकारों को विभक्त किया है । अर्थ में ही सौन्दर्य भूयस्त्व होने के कारण में प्रथमतः अर्थालङ्कारों का ही विवेचन करूँगा। उपमा सर्वालङ्कार प्रधान है अतः प्रथमतः उसी को लिया जा रहा है।
1. उपमा : जयोदय महाकाव्य में उपमा अलङ्कार प्राचुर्यतया देखने को मिलता है । इस महाकाव्य में प्रयुक्त उपमा सहृदय हृदय को आवर्जित करने में पूर्ण समर्थ है। साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ के अनुसार एक वाक्य में जहाँ उपमान उपमेय दोनों का साधारण धर्म बताया गया हो, एवम् उपमावाचक शब्द का प्रयोग हो, उसे उपमा अलङ्कार कहते है''। अर्थालंकारों में प्रधान तथा उनका पात्र है उपमा | इस क्रम में उन्तीस सादृश्यमूलक अलंकार आते हैं इसलिये अप्यय्य दीक्षित ने कहा है
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"उपमैका शैलषी संप्राप्ता चित्रभूमिकाभेदान् । रंजयति काव्यरङ्गे नृत्यन्ती तद्विदां चेतः 'उपमा एक नटी है, जो अनेक अलङ्कारों की भूमिका को प्राप्त कर काव्य मंच पर नृत्य करती हुई काव्य मर्मज्ञों के चित्त को आनन्दित करती है । '
अप्यय्य दीक्षित का कहना है कि जिस प्रकार ब्रह्मज्ञान से विचित्र जगत् का ज्ञान हो जाता है, उसी प्रकार उपमा के ज्ञान से समस्त अलङ्कार ज्ञात हो जाते हैं -
'तदिदं चित्रं विश्वं ब्रह्मज्ञानादिवोपमाज्ञानात् । ज्ञातं भवतीत्यादौ निरूप्यते निखिलभेदसहिता सा ॥
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भरत ने नाट्यशास्त्र में जिन चार अलङ्कारों का परिगणन किया है, उनमें उपमा को सर्वप्रथम स्थान दिया है4 । वामन ने प्रतिवस्तुप्रभृति अनेक अलङ्कारों को उपमा का प्रपंच माना है । रुट्ट ने भी अनेक अलङ्कारों को औपम्य का भेद स्वीकार किया है । महिम भट्ट ने 'सर्वेष्वलङ्कारेषूपमा जीवितायते ' कहकर इसकी महत्ता और व्यापकता का उद्घोष किया है। राजशेखर उपमा को कवि वंश की माता मानते हु उसे अलङ्कार शिरोमणि तथा काव्य सम्पत्ति का सर्वस्व स्वीकार करते हैं
'अलङ्कारशिरोरत्नं
काव्य
उपमा
सर्वस्वं कविवंशस्य मातैवेति मतिर्मम अलङ्कार सर्वस्वकार ने इसे अनेक अलङ्कारों की बीणा माना है
"
सम्पदाम् ।
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