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तो यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि उनमें ये गाथाएं प्रकीर्णक साहित्य से ही गई है, क्योंकि मूलाचार में तो आतुरप्रत्याख्यान जैसा पूरा का पूरा प्रकीर्णक ही समाहित कर लिया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में मिलने वाली समान गाथाओं के संबंध में भी हमारा निष्कर्ष यही है कि उनमें प्रकीर्णकों की गाथाएं मूलाचार और भगवती आराधना के माध्यम से गई हैं।
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नन्दिसूत्र में उल्लिखित आगम साहित्य की सूची के विभिन्न वर्गों में जिन नी प्रकीर्णकों के नाम मिलते हैं12 वे सभी प्रकीर्णक प्राचीन स्तर के प्रतीत होते हैं। इनमें से कोई भी प्रकीर्णक ऐसा नहीं है जो तीसरी चौथी शताब्दी के बाद की रचना हो ।
प्रकीर्णक साहित्य को चाहे उसकी प्राचीनता की दृष्टि से देखा जाये, चाहे विषय वस्तु की दृष्टि से उसका आकलन किया जाये अथवा व्यक्ति के आध्यात्मिक साधनात्मक एवं चारित्रिक मूल्यों के विकास में उनका मूल्यांकन किया जाये, प्रकीर्णकों की महत्ता किसी भी प्रकार से आगाम साहित्य से निम्न सिद्ध नहीं होती है।
अनुवाद के अभाव में आज प्रकीर्णक ग्रन्थ भले ही आगम ग्रन्थों के समतुल्य अपना स्थान न बना पाये हों, किन्तु जब सम्पूर्ण प्रकीर्णक साहित्य अनुदित होकर जनसामान्य के हाथों पहुंचेगा तब जनसामान्य इनके मूल्य एवं महत्व को समझ पायेगा। जैन समाज का यह दुर्भाग्य रहा कि अध्यात्मप्रधान इन ग्रन्थों की समाज में उपेक्षा होती रही है और इन्हें द्वितीयक स्तर का माना जाता रहा, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि उदात जीवन मूल्यों को प्रतिपादित करने वाले प्रकीर्णक साहित्य का अध्ययन करके हम इनमें प्रतिपादित जीवन-मूल्यों को जीवन में आत्मसात करें I
हीरक जयन्ती स्मारिका
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1
विधिमार्गप्रथा सम्पा, जिनविजय, , पृ0 55 2- समवायांगसूत्र - सम्पा, मुनि मधुकर, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रथम संस्करण 1982, 84वां समवाय, पृ0 143
3
• पइण्णयसुत्ताई- सम्पा. मुनि पुण्यविजय, प्रका. श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, भाग-1, प्रथम संस्करण 1984, प्रस्तावना पृ0 20
4- प्राकृत साहित्य का इतिहास जैन, जगदीश चन्द्र, प्रका. चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी, ई. सन् 1961, पृ0 123
5- दृष्टव्य है- वही, पृ0 123 टिप्पणी ।
6- पइण्णयसुत्ताई- भाग-1, प्रस्तावना पृ0 18
7- (क) नन्दीसूत्र - सम्पा. मुनि मधुकर, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, ई. सन् 1982, पृ0 161-162
(ख) पाक्षिकसूत्र प्रका. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, पृ0 16
8- ऋषिभाषित एक अध्ययन- डॉ. सागर मल जैन, प्रका. प्राकृत भारती अकादमी जयपुर, प्रथम संस्करण 1988, पृ0 4 9- वही, पृष्ठ 5-6
10- आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर द्वारा वर्ष 1994 में आयोजित "प्रकीर्णक साहित्य : अध्ययन एवं समीक्षा संगोष्ठी" में श्री जोहरीमल जी पारख द्वारा पठित एवं प्रस्तुत शोध पत्र " प्रकीर्णक आगम" पृ० 9
11
(क) नन्दीसूत्र, सूत्र 80
(ख) नन्दी सूत्र, सूत्र 80, चूर्णी पृ0 58
12- नन्दीसूत्र, सूत्र 76, 79-80
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विद्वत् खण्ड / २६
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