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मूर्ति का श्री जिनचन्द्र सूरिभि :
इलोरा गुफा मंदिर : कुशल निर्देश के सितम्बर 92 के अंक में एलोरा की अम्बिका देवी का सुन्दर चित्र प्रकाशित किया जिसमें फलयुक्त विशाल आम्रवृक्ष के नीचे देवी विराजित हैं, दोनों ओर दोनों पुत्र खड़े हैं।
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सतना (मध्य प्र. ) अम्बिका की सभी मूर्तियां बैठी हुई मिलती हैं और दोनों पुत्र एक गोद में और दूसरा पास में खड़ा होता है। कुछ सपरिकर और कई बिना परिकर की हैं। सतना (मध्य प्रदेश) की प्रतिमा खड़ी हुई है यह कलापूर्ण सपरिकर है और दोनों पुत्र उभयपक्ष में खड़े हैं। मैंने इस प्रतिमा का चित्र कुशल निर्देश मार्च 1994 के अंक में प्रकाशित किया है।
नगरकोट कांगड़ा कांगड़ा में अम्बिका का मूर्ति मंदिर था, किन्तु अब नहीं रहा है। सुप्रसिद्ध उपाध्याय श्री जयसागर जी ने विज्ञप्ति त्रिवेणी में लिखा है कि कांगड़ा नगर कोट में शासन देवी अम्विका का चमत्कारिक मंदिर है, जिसका वर्णन अनेकशः संप्राप्त है।
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भगवान की चरण सेविका शासन देवी अम्बिका है। इसके प्रक्षालन का जल चाहे वह एक हजार घड़ों जितना हो तो भी भगवान के प्रक्षालन के पानी के साथ पास-पास होने पर भी कभी नहीं मिलता। मन्दिर के मूल गर्भ गृह में कितना ही जल क्यों न पड़ा हो बाहर से दरवाजे ऐसे बंद कर दिए जाए कि चींटी भी प्रवेश न कर सके, तो भी क्षणमात्र सारा पानी सूख जायगा । जयसागरोपाध्याय लिखते हैं कि
"बारइ नेमीसर तणइ ए, थाप्पेय राय सुसम्मि । आदिनाह अम्बिक सहिय, कंगड कोट सिरम्मि ।। " अम्बिका और आरासण नगर :
आरासण नगर चन्द्रावती ( आबू) के पास है। यहां अम्बाजी नाम का ग्राम है। इसे अम्बा देवी का मंदिर कहते हैं। यहां कई जैन मन्दिर हैं। महावीर स्वामी के मंदिर में अम्बा देवी की मूर्ति है जिस पर बि. स. 1675 का लेख है। मूलरूप से यह प्रतिमा वि. सं. 1120 में प्रतिष्ठित हुई थी। इस पर पुन: वि.सं. 1675 में विजय देव सूरि की प्रतिष्ठा का उल्लेख है।
पुराणों में आबू क्षेत्र में अम्बा जी का एक प्राचीन स्थल था । स्कन्दपुराण में अधिका खण्ड में इसका उल्लेख है। इसे चंडिका नाम भी दिया गया है। इसे असुरों के नाश करने के लिए भगवान ने प्रकट किया था । ऋगवेद में सरस्वती एक अम्बिका का उल्लेख भी सारस्वत सूक्त में है । यहां अम्बा देवी के लिए "अंबी तमे" लिखा गया है। (ऋग्वेद संहिता मंडल 10 सारस्वत सूत्र मंत्र ।) ऐतिहासिक उल्लेखों के अनुसार बलभीपुर के राजा शीलादित्य पर मुसलमानों का आक्रमण हो गया। उसकी राणी पुष्पावती चन्द्रावती के राजा की पुत्री थी। उस समय राजा ने बड़ी दृढ़तापूर्वक उनका मुकाबला किया। अंत में उसके राज्य का विनाश हो गया और राणी अम्बा भवानी के मन्दिर में भाग गई। बौद्ध ग्रंथ "डाकार्णव" में आर्बुदीदेवी का नाम अम्बिका के लिए किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह अम्बाजी
हीरक जयन्ती स्मारिका
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का मन्दिर 10-11 शताब्दी के बाद प्रसिद्धि में आया था। यह परमार राजा की कुल देवी थी। गिरनार पर्वत पर सं. 1215 में इसके एक मन्दिर वन जाने का उल्लेख एक शिलालेख में है।
अम्बाजी में माताजी का मन्दिर किले के सामने मोटे गढ़ में है। पहले इसका द्वार आता है। इसके बाद डा. वी. बाजु पुजारी का मकान आता है। इसके बाद काल भैरव का स्थान है। इस मन्दिर के पास एक प्राचीन बावड़ी भी है। इसके ऊपर एक धर्मशाला है। इसके बाद खुला चौक आता है। वहां से भगवती का मन्दिर शुरू होता है। इस मन्दिर में सुन्दर सीढ़ियां है इसके बाद भव्य मंडप है। इस मन्दिर के शिलालेखों में नागर ब्राह्मणों द्वारा 15वीं शताब्दी के उल्लेख है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाराजा कुंभा ने इस क्षेत्र को जीता और आरासण का नाम बदलकर अपने नाम पर इसे "कुंभारिया" रख दिया।
यहां और आसपास भी कई स्थान हैं। इनमें गब्बर कोटेश्वर आदि स्थान है। कुंभारिया में अम्विका की मूर्ति 12वीं या 13वीं शताब्दी की है यह देवकुलिका की भ्रमती में है नेमिनाथ मन्दिर गिरनार में सं. 1059 ई. के आसपास स्थापित मूर्ति है ।
श्री जिनेश्वर सूरि कृतम् :
श्री अम्बिका देवी अष्टकम् :
देवगन्धर्व विद्याधरैर्वन्दिते जय जयामित्र वित्रासने विश्रुते ।
नूपुरा राव सुनिरुद्ध भुनोदरे, मुखरतर किंकिणी चारुता स्वरे ॥ 1 ॥ ऊं हीं मंत्र रूपे शिवे शिवकरे, अम्बिके देवि जय जयन्तु रक्षा करे । स्फुरतार हारावली राजितोरास्थले, कर्ण ताडंक रूचिरम्य दंक स्थले- 2 स्तंभिनी मोहिनी इश उच्चाटने, क्षुद्र विद्राविणी दोष निर्वाशिनी। जम्भिनी भ्रान्ति भूतग्रह स्फोटिनी, शांति धृति कीर्तिमति सिद्धि संसाधिनी ॥ 3 ॥
ॐ महामंत्र विद्येउनवद्ये स्वयं, ह्रीं समागच्छ में देवि दुरित क्षयम् । ॐ प्रचण्डे प्रसीदक्षण (हे) सदानंद रूपे विदेहि क्षणम्...4
ऊं नमो देवि ! दिव्य श्वमें भैरवे, जये अपराजिते तप्त हेमच्छवेः ॥
ऊं जगज्जननि संहार सम्मार्जनी, ह्रीं कुष्माण्डि दिव्याधि विध्वंशिनी...5 पिंग तारोत्पद्य कण्डीरवे, नाम मंत्रेण निर्नाशितोपद्रवे । अवसरानतर रैवतक गिरिनिवासिनी, अंबिके जय जय त्वं जगत्सवामिनी... 6 ही महाविघ्न संघात् निर्नाशिनी, दुष्ट परमंत्र विद्या बलच्छेदिनी । हस्तविन्यस्त सहकारफल लुंबिका, हरतु दुरितानि देवी जगदम्बिका... 7 इतिजिनेश्वरसूरिभिरंबिका, भगवतिशुभा मंत्र पदैः स्तुता । डावर पात्रता शुभसम्पद वितरतुप्राणिहंत्वंशिवं मम...8 अंबिका मंत्र (विविध तीर्थकल्प से) वयवीयम् कुल कुलजलह रिहय अक्कंतर पेआई। पणइणि वायावसिओ अंबि देवी इ अहमंतो...I ध्रुवभुवण देव संबुद्धि पास अंकुस तिलोअ पंचसरा । णहसिहि 'कुलकल अब्भासिअमाया पर पणाम पयं...2 यागुग्भवं तिलोअं पास सिणीहा ओतइअवन्त्रस्स । कुंडं च अंविआए नमुत्ति आराहणा मंतो... 3
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विद्वत् खण्ड / ७४
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