Book Title: Jain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Author(s): Kameshwar Prasad
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 253
________________ रहा है। इस युग के मनुष्य प्रबल जिजीविषा सम्पन्न प्राणवान और मस्त होते थे। जीवन को सम्पूर्ण हृदय से प्यार करते थे और अविचल निष्ठा से उसका शृंगार करते थे। मध्य युग संस्कृति के उत्थान-पतन की दृष्टि से कोई खास गौरवपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इस युग में साधना को बहुत कुछ अर्थों में हमने भुला दिया। रूढ़ियों, अंधविश्वासों और पाखंड का जाल फैल जाता है। हम भारतीयों के आचरण और विश्वास में अंतर आ जाता है। हम व्यवहार में छूत-अछूत को लेकर गर्दन काटने को सदा उद्यत रहते हैं। वस्तुत: इस युग में प्रत्येक भारतीय का व्यक्तित्व खंडित हो गया दुख की बात यह है कि नवीन भारत विश्व को कुछ भी देने में असमर्थ है। वह तो स्वयं दूसरों का पिछलग्गू हो गया है। आज के पीड़ित विश्व की दवा भारत के पास ही है, पर उस भारत के पास जो सामाजिक संस्कृति का रक्षक है। संसार की पीड़ा का कारण भिन्न आदर्शों और जातियों का एक साथ मिलकर नहीं रहने की भावना भी है। आज कोई भी किसी का विश्वास नहीं करता। कोई भी अपने आदर्शों, विश्वासों और विशेषताओं को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। पर भारत में ऐसा नहीं है। भारत ने किसी भी जाति का गौरव घटाये बिना उसको एक सांस्कृतिक सूत्र में गूंथा था। उसने बिना किसी धर्म को दबाये सभी धर्मों की एकता स्थापित की, सिर्फ अहिंसा के बल पर। भारतीय संस्कृति की आज के विश्व को यही सबसे बड़ी देन है। अपनी भूतकालीन संस्कृतियों के निर्माणकारी जीवन तत्वों को लेकर जब हम स्वदेश, उन्नति और विश्व शांति के कर्मों में निरन्तर लगे रहेंगे तभी स्वतंत्र भारत को विश्व के रंगमंच पर सम्मानपूर्ण स्थान दिला सकते नये युग के प्रारम्भ में समुद्री मार्ग से आने वाली जातियों के सम्पर्क में भारत आया। इन जातियों के सम्पर्क में आने पर आधुनिक सभ्यता और संस्कृति के तत्वों को हमने अपनाया। परन्तु इस आदान के साथ हमें वह आधुनिक सभ्यता का विष भी मिला है जिससे सम्पूर्ण संसार अत्यंत पीड़ित है। फिर भी आज का संसार अपनी पीड़ा के उपचार के लिए भारत की ओर आंखे उठाकर देख रहा है। हैं। हीरक जयन्ती स्मारिका विद्यार्थी खण्ड / १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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