Book Title: Jain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Author(s): Kameshwar Prasad
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 242
________________ देवेश जैन, XI-C आधुनिक भारत और संस्कृति मनुष्य इस धरती पर कब आए, इस बात का कोई सही प्रमाण नहीं है। पर हां, उनका विकास किस प्रकार हुआ, इस बात के प्रमाण हैं। भारत का अतीत बड़ा ही गौरवशाली और शक्तिशाली था । उस समय भारत ज्ञान, दर्शन शक्ति और शांति के क्षेत्र में विश्व में सर्वोपरि था। हम महान् थे, हमारा राष्ट्र महान् था, हमारी संस्कृति महान् थी । हमारी एक भाषा थी, एक विचारधारा थी । यह सब हमारे गहने थे, पर धीरे-धीरे न जाने कब और कैसे हमारे ये आभूषण उतरने लगे। यह हमारी ही सभ्यता के विकास का परिणाम था कि अन्य देश भी सभ्य हुए। पर अब जबकि हमारे आभूषण उत्तर चुके हैं, इसका श्रेय भी हमीं को जाता है और यह केवल पश्चिमी सभ्यता के कारण हुआ है। यही कारण है कि आज हमारी संस्कृति खतरे में पड़ी है। अंग्रेजों ने हमें अकर्मण्य, विलासी, भ्रष्ट बनाकर हमारा गौरव हमसे छीन लिया है। 'बड़े गहरे लगे हैं पाव सदियों के मसीहा, इनको ममता भर के सहलाओ ।। " भारत एक विशाल देश है। अगर हम इसके अतीत को देखेंगे तो हमें यह पता चलेगा कि यह अपने कुछ विशेष गुणों के कारण विश्व में अपना एक विशेष स्थान रखता है। संस्कृति भी इन्हीं गुणों में से एक है। इतिहास के पन्ने उलटने पर हमें यह देखने को मिलता है कि आज तक जितने भी सम्राटों ने इस देश पर शासन किया वे सभी संस्कृति हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International के प्रेमी थे। मुगल सम्राट अकबर गान - विद्या का प्रेमी था। तानसेन जैसा गायक उसके नवरत्नों में शरीक थे। वह अनपढ़ होकर भी विद्वानों का आदर करता था। सही मायनो में मुगल शासन काल में भारतीय संस्कृति की उन्नति हुई। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता है । बाबर से लेकर शाहजहां तक हर कोई कवि तथा विद्या का प्रेमी था। इनमें से कोई तो स्वयं लेखक था। मुगल सम्राटों ने अनेक विद्वानों व कवियों को पुरस्कृत किया। इस काल में न केवल उर्दू, फारसी व अरची की उन्नति हुई, बल्कि उसके साथ-साथ हिन्दी साहित्य की उन्नति भी हुई। मुगल शासक कला-कौशल एवं चित्रकला के भी प्रेमी थे। परन्तु बड़े दुःख की बात यह है कि जिस भारत की पहचान संस्कृति से होती थी, वही संस्कृति अब धीरे-धीरे नष्ट हो रही है— "जगे हम, लगे जगाने, विश्व लोक में फैला फिर आलोक, व्योम-तम- पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक । " जयशंकर जी की इन पंक्तियों से यह बात बिल्कुल साफ है कि हमने ही विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ाया। हम सबसे पहले सभ्य हुए और फिर विश्व के अन्य लोग पर, आज यह बात कहां। आज तो यह नौबत आ गई है कि हम अपनी संस्कृति को भूलकर उनकी संस्कृति के रंग में रंग गए हैं। पर एक समय तो ऐसा था कि पश्चिमी देशों के लोग हमारी संस्कृति को अपनाते थे और उसका दर्शन करने के लिए दूर-दूर से यहां आते थे। इतिहास गवाह है कि चन्द्रगुप्त के शासन काल में फाहियान और हर्षवर्द्धन ने काल में हुएनसांग चीन से भारत चलकर आए। उन्हें क्या गरज थी कि वे भारत आते पर उन्हें हमारी सभ्यता, संस्कृति ने आकर्षित किया था। पश्चिमी सभ्यता हमारे जीवन में इस तरह घुल गई है कि हम यह बात सोच तक नहीं सकते। हमारे रहन-सहन, वेशT-भूषा, खान-पान आदि सभी क्षेत्रों में बदलाव आया। जहां हम धोती, कुर्ता या कुरता-पजामा पहनते थे, वहीं आजकल पैन्ट-शर्ट पहनने लगे। जहां हम सुप्रभात कहते थे वहीं 'गुडमार्निंग' कहने लगे आखिर यह सब क्या है? यह हमारी संस्कृति का पतन ही तो है। चलचित्र हमारे मनोरंजन के साधनों में से एक है, पर यह भी भ्रष्ट हो गया । अर्थात् यह हमारी संस्कृति को खोखला कर रहा है। एक जमाना था, जब मनोरंजन का साधन नाटक- नौटंकी हुआ करती थी । पर अब यह सब कहां, क्योंकि अब हमें ये रुचिकर नहीं लगते। उनका स्थान अब चित्रपट अथवा सिनेमा ने ले लिया है। पर इस क्षेत्र में भी अता आ गई है और अब ये पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होने लगे हैं। आजकल जितने भी चित्र तैयार हो रहे हैं, वे अधिकतर प्रेम और वासनामय हैं। इस प्रकार भरातवर्ष में तो इसके दुरुपयोग की चरम सीमा हो गई है। सिनेमा आज मनोरंजन का साधन न होकर व्यसन बन गया है और आए दिन उसका दुष्परिणाम देखने को मिलता है। आधुनिक काल में नवयुवकों के चारित्रिक पतन का अधिकांश उत्तरदायित्व सिनेमा पर ही है। अधिकतर फिल्मों के कथानक भद्दे तथा श्रृंगार से परिपूर्ण - For Private & Personal Use Only विद्यार्थी खण्ड / ५ www.jainelibrary.org

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