Book Title: Jain Vidyalay Hirak Jayanti Granth
Author(s): Kameshwar Prasad
Publisher: Jain Vidyalaya Calcutta

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Page 181
________________ हैं। सुदूर दक्षिणी क्षेत्रों-मदुरा, दक्कन (बहमनी), बरार (इमाद शाही), अहमदनगर (निजाम शाही), बीजापुर (आदिल शाही), तेलंगाना (कुतुबशाही), बीदार (बारिदशाही) से प्रसारित सिक्के भी हमें प्राप्त प्रसारित किए। महमूद के परवर्ती उत्तराधिकारियों ने गौर के शासकों ने गजनी को हस्तगत कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और 1051 ई0 के लगभग वहां से सिक्के जारी किए। इन गजनवी शासकों में से हमें फारुखजाद (1052-1059 ई0), इब्राहिम (1059-1099 ई0), बहरामशाह (1118-1152 ई0) और खुशरू मलिक (1160-1187 ई0) के सिक्के प्राप्त हुए हैं। खुशरू मलिक को अपदस्थ करके मुहम्मद गोरी ने 1192 ई0 में थानेश्वर की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर भारत में प्रथम मुस्लिम साम्राज्य की नींव डाली। उसने सोने, ताम्र मिश्रित चांदी के (बिलन) तथा तांबे के सिक्के जारी किए। इसके पश्चात् हमें महमूद, ताजूद्दीन इलदीज, कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिस (1211-1236 ई0), रूक्नूद्दीन फिरोज शाह (1235 ई0), जलालुद्दीन, रजिया (1236-1240 ई0), मोयजूद्दीन, बहराम शाह (1240-1242 ई0), गयासुद्दीन बलबन (1266-1287 ई०), मोयजुद्दीन केकुबाद (1287-1290 ई0), शमशुद्दीन केयूमरास (1290 ई0) के सिक्के प्राप्त होते हैं। 1290 ई0 में भारत का शासन अन्य खिलजी शासकों को हस्तान्तरित हो गया। इनमें से हमें जलालुद्दीन फिरोज (1290-1296 ई0), रूक्नुद्दीन इब्राहिम (1296 ई0), अलाउद्दीन मुहम्मद शाह (1296-1316 ई0), कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के सिक्के प्राप्त हुए हैं। वे 1320 ई0 में शासनारूढ़ हुए। इनमें हमें गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक, फिरोज शाह तुगलक, तुगलक द्वितीय (1388 ई0), अबूबकर (1318 ई0), मुहम्मद बिन फिरोज (1389-1392 ई0), सिंकदर (1392 ई0) और महमूद (1392-1412) के सिक्के प्राप्त होते हैं। इसी बीच सन् 1398 ई0 में तैमूर ने दिल्ली के सिंहासन पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। तत्पश्चात् तुगलक साम्राज्य के अंतिम वंशधर महमूद के मरणोपरांत उसके राजदरबारियों ने शासन की बागडोर दौलत खान लोदी के हाथों में सौंप दी। वह 1413 ई0 में राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, लेकिन उसे भी खिजरखान ने राज्यच्युत कर सैय्यद वंश का वर्चस्व स्थापित किया। बाद में मुबारक शाह, मुहम्मद बिन फरीद, आलमशाह इत्यादि ने सिक्के जारी किए। सन् 1451 ई0 में बहलोल लोदी ने शासन की डोर सम्भाली। उसके उत्तराधिकारी सिकंदर लोदी इब्राहिम लोदी हुए जिन्होंने अपने सिक्के प्रचलित किए। 1526 ई0 में इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में मारकर बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली। लेकिन उसके उत्तराधिकारी हुमायूं को शेरशाह सूरी ने 1540 ई0 में हटाकर सूरी शासन स्थापित किया। उसने चांदी तथा तांबे के कई सिक्के कई जगहों से प्रसारित किए। इसके उत्तराधिकारी शासकों- इस्लाम शाह (1545-1552 ई0), मुहम्मद आदिल शाह (1552-1553 ई0), इब्राहिम (1553 ई0), सिकंदर सूर (1554 ई0) ने क्रमश: सिक्के जारी किए। शेरशाह ने ही सर्वप्रथम चांदी के सिक्कों का नाम रुपया रखा जो आज भी प्रचलित है। उपर्युक्त दिल्ली सुलतानों के उच्चाधिकारी जो विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त किए जाते थे जब कभी केन्द्रीय शासन में शिथिलता का आभास पाते अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर अपने सिक्के प्रचारित करने लगते। इस तरह के सिक्के हमें बंगाल, गुजरात, मालवा और जौनपुर क्षेत्रों के विभिन्न पदाधिकारियों द्वारा जारी किए मिलते हैं। इनके अतिरिक्त कश्मीर क्षेत्र से हमें स्वतंत्र राजाओं के सिक्के भी इस समय में मिलते - पानीपत के युद्ध में सन् 1526 ई0 में इब्राहिम लोदी को परास्त कर जहरूद्दीन बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली थी लेकिन उसके उत्तराधिकारी हुमायूं को सन् 1542 ई0 में शेरशाह सूरी ने पदच्युत कर दिया था। परन्तु उसने पुन: दिल्ली को हस्तगत कर लिया। सन् 1556 ई0 में उसके पुत्र अकबर ने शासन भार सम्भाला। इन तीनों मुगलशासकों के विभिन्न प्रकार के सिक्के हमें प्राप्त होते हैं। इनके पश्चात् क्रमश: हमें जहांगीर (1605-1627 ई0), दावर बख्श (1627 ई0), शाहजहां (1628-1658 ई0) मुराद बख्श (1658 ई0), शाहसूजा (1657-1660 ई0, औरंगजेब (1658-1707 ई0), आजमशाह (1707 ई0), कामबख्स (1707-1708 ई0), शाह आलम बहादुर (1707-1712 ई०), अजिमुसान (1712 ई0), जहांदारशाह (1712 ई0), फारुखसियर (1713-1719 ई0), निकुसियर (1719 ई0), रफूदरजात (1719 ई0), शाहजहां द्वितीय (रफूदौला, 1719 ई0), मुहम्मद इब्राहिम (1720 ई0), मुहम्मद शाह (1719-1748 ई0) अहमदशाह बहादुर (1748-1754 ई0), आलमगीर द्वितीय (1754-1759 ई0), शाहजहां तृतीय (1759-1760 ई0), शाह आलम द्वितीय (1759-1806 ई0), बेदार बख्त (1788 ई0), मुहम्मद अकबर द्वितीय (1806-1837 ई0) तथा बहादुर शाह द्वितीय (1837-1858 ई0) के सिक्के विभिन्न आकार, धातुओं और स्थानों से मुद्रित मिलते हैं। उपर्युक्त मुस्लिम एवं मुगल शासकों के बढ़ते हुए वर्चस्व के फलस्वरूप चौदहवीं और सोलहवीं सदी के मध्य यद्यपि हिन्दू शासन का बने रहना दूभर हो गया था तथापि हमें कतिपय हिन्दू राजाओं द्वारा मुद्रित सिक्के इस समय के कांगड़ा, मध्य भारत के गोंड़ शासकों, मिथिला, आसाम आदि स्थानों से प्राप्त होते हैं। ____ मुगल साम्राज्य के पतन के उपरांत हमें मराठा शक्ति के उदय की झलक मिलती है। जब सत्रहवीं शती में महान् शिवाजी द्वारा कोंकण क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया गया। उन्होंने तथा उनके उत्तराधिकारियों ने राज्य के क्षेत्रफल को अत्यधिक विस्तृत किया। मराठा शक्ति को पेशवाओं के पदार्पण से और अधिक ऊर्जा मिली। इनके विभिन्न प्रकार के सिक्के हमें मिलते हैं। उधर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में सन् 1739 में नादिरशाह ने आक्रमण कर दिल्ली तक के क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया था। नादिरशाह का कत्ल उसी के एक अधिकारी अहमदशाह द्वारा इन् 1747 में कर दिया गया। इन दुर्रानी शासकों ने भी अपने सिक्के इस समय में प्रसारित किए। उधर अहमदशाह दुर्रानी के पंजाब क्षेत्र में लगातार हुए हमलों के फलस्वरूप सिक्खों की लीग 'खालसा' का उदय हुआ और उन्होंने 1710 ई0 में अहमदशाह की राजधानी सरहिन्द को तहस-नहस कर दिया। इनके नेता 'बंदा' (सच्चा बादशाह) द्वारा सिक्के प्रचलित किए गए। सन् 1777 ई0 के आसपास नानक शाही सिक्कों का प्रचलन अमृतसर से किया गया। इसके पश्चात् राजा रणजीत सिंह द्वारा भी सिक्के मुद्रित किए गए। मालेरकोटला, जिंद, नाभा, कैताल और कश्मीर के डोगरा हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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