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साल सी दीखी सो नगे कर सेठ प्रेमचंद ने हुकम की दो सो वे भी अरज करी आ न्यात म्हे हक सर मालुम हुई सो अब तलक माफक दस्तूर के थे थारो करायो जास्यो आगे सूं थारे वंस को होवेगा जीके तलक हुवा जावेगा पंचाने बी हुकम कर दी यो है सो पेली तलक थारे होवेगा प्रधानजी मेहता सेरसींध सं. 1912 जेठ सुदि 15 बुधे" ___ यह दानपत्र बहुत ही महत्व का है। इसमें यह वर्णित है कि न्यात के सम्मेलन में जब सब पंच इकट्ठे होवें तो पहले पहले तिलक भामाशाह के वंशज कावड़िया गोत्रवालों के किया जायेगा। इसके बाद अन्य लोगों को। इसमें यह लिखा है कि पहले से कावड़ियों के ही तिलक होता आया था किन्तु महाराणा स्वरूप सिंह के समय नगर सेठ ने इसमें आपत्ति की और उसने अपने पहले तिलक लगाने को कहा। इस पर कावड़ियों ने महाराणा से शिकायत की, इस पर यह निर्णय दिया गया।
बाईस सम्प्रदाय की पट्टावली जिसमें भामाशाह का वर्णन नागौर के लुकाकच्छ की है। इसमें वर्णित है कि देपागर नामक एक साधु ने भामाशाह को अपने धर्म के प्रति आस्थावान बनाया है इसके बाद भामाशाह ने इसके प्रचार के लिए दिन-रात पूरी कोशिश की। जगह-जगह और जिलों के हाकिमों को निर्देश दे दिये। इससे इसके प्रचार में महत्वपूर्ण सफलता मिली। राजस्थान में या भारत के किसी राज्य में ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें राज्य के एक मंत्री ने किसी धर्म प्रचार के लिए ऐसा महत्वपूर्ण कार्य किया हो।
अत: भामाशाह का नाम देश भक्ति के साथ धर्म प्रचार की दृष्टि से अद्वितीय है।
एस-3-ए, सत्य नगर झोरवाड़ा, जयपुर (राज.)
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड /८०
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