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दृश्य :3 (रोहित घबराया सा दौड़कर आता है) रोहित : मां, मां, देखो न रूखी काकी को क्या हो गया, देखो न ।
(दोनों वहां जाते हैं) रूखी : (बड़बड़ाते हुए) मैं चोर नहीं... मैं चोर नहीं। हे भगवान,
मेरे माथे ऐसा कलंक क्यों लगाते हो प्रभु... क्यों लगाते
हो प्रभु... शोभना : चार दिन हो गये पर बुखार जैसे बढ़ता ही जा रहा है।
(अपने आप से) डाक्टर ने सन्निपात बताया है वह तो कहता था कि बचना मुश्किल है। ज्वर काबू में ही नहीं आ रहा
दिनकर : मेरा सिगरेट लाइटर देखा है रूखी? रूखी : नहीं तो! दिनकर : अभी थोड़ी देर पहले यहीं पड़ा था। रूखी : मैने नहीं देखा साहब। दिनकर : रूखी, घर में आये दिन चीजें गुम होती रहती हैं यह तो
तुम जानती हो न? रूखी : हां साहब। दिनकर : मेरी समझ में नहीं आता कि चीजें कौन चुरा लेता है भला? रूखी : मेरी समझ में भी यह बात नहीं आती साहब, पहले नौकरों
पर शक था पर तीन-तीन नौकर बदलने पर भी चोरी चालू
है और बालू तो हाथ का साफ है। दिनकर : तो फिर चीजें जाती कहां हैं? जमीन तो नहीं निगल जाती।
__ बालू चोर नहीं तो क्या हम चोर हैं? रूखी : मैं समझती हूं साहब । दिनकर : क्या समझती हो? रूखी : अगर इसी तरह चीजें चोरी होती रही तो मुझ पर ही शक
होगा, मगर मैं इतने समय से आपके यहां काम करती हूं
कभी एक पैसे की चीज भी... दिनकर : आदमी की मति फिरते देर नहीं लगती रूखी। चीजें कौन
चुराता है यह हम से छिपा हुआ नहीं है। रूखी : क्या आपको मुझ पर शक है? दिनकर : तो और किस पर शक करें ? रूखी : बेन, साहब मैं भगवान की कसम खाकर कहती हूं मैंने आज
तक कभी चोरी नहीं की। शोभना : चोरी करने वाले ही झूठी कसमें खाते हैं। रूखी : मेरा न कोई आगे न पीछे, मैं किसके लिए चोरी करूंगी
भला। पेट की खाई तो आपके द्वार पर ही भर जाती है मैं चोर नहीं हूं। भगवान की कसम के सिवा और कोई
उपाय नहीं है मेरे पास। दिनकर : तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं हमने रास्ता सोच रखा
(बाहर से दिनकर की आवाज) दिनकर : शोभना... शोभना : आती हूं... (आकर) क्या है...? दिनकर : वह मेरा सिगरेट केस नहीं मिल रहा... शोभना : क्या! इधर यह बेचारी चार दिन से खाट से लगी है। दिनकर : क्या कहा डॉक्टर ने? शोभना : डॉक्टर को कोई उम्मीद नहीं है इसके बचने की। कहता
था अस्पताल में भर्ती कर दो, तुम क्या कहते हो? दिनकर : यह तो बड़ा जुल्म हो गया शोभना... शोभना : हां, कहीं ऐसी निर्दोष सेविका की हत्या का पाप हमारे
सर न लगे। दिनकर : कितनी बड़ी भूल हो गयी हमसे... मैं अभी उसे अस्पताल में भर्ती करने का बन्दोबस्त करता हूं।
दृश्य : 4 (अस्पताल में रूखी के पास शोभना और दिनकर) शोभना : रूखी कैसी हो...? रूखी : आप की दया है। दिनकर : ...हम से बहुत बड़ी भूल हो गयी रूखी। हमें विश्वास
हो गया है कि चोरी तुमने नहीं की, हमने तुम पर नाहक
शक किया, सच हमें बहुत अफसोस है। रूखी : (अपने आप से) मुझे जीवित रखने के लिए ही ऐसा कहते
हैं। (दिनकर से) साहब एक बार इजत गयी सो गयी,
अब मेरे लिए जीना बेकार है। शोभना : हम झूठ नहीं कहते रूखी, विश्वास करो तुम अस्पताल
में पड़ी हो पर घर में अब भी चोरी हो रही है। रूखी : (अपने आप से) शायद सच ही कहते हो। (दोनों से) तो
यह भी बतला दो साहब ताकि मेरी आत्मा की सद्गति
हो। दिनकर : अभी हम उसे पकड़ नहीं पाये हैं पर उसका पता चलते
ही हम उसे तुम्हारे सामने जरूर लायेंगे। फिर तुम ही उसे जो सजा देनी हो देना।
रूखी : आप ने जो सोचा होगा ठीक ही होगा। जो सत्य होगा
वह तो सामने आयेगा ही। दिनकर : हमने तुम्हें नौकरी से हटाने का फैसला किया है। रूखी : ठीक है साहब, आप मालिक हैं। पर इस तरह माथे पर
काला टीका लगाकर न निकालें। मैं फिर कहती हूं मैं चोर
नहीं। दिनकर : तुम्हारे जाने के बाद अगर चोरी बंद हो गयी तो हमें फिर
किसी दूसरे विश्वास की जरूरत नहीं रहेगी। रूखी : (रोती सी) हे राम! इस उमर में ऐसा कलंक लगाकर मुझे
किस जन्म के पापों की सजा दे रहे हो प्रभु... (सिसकती सी जाती है) मैं कल ही चली जाऊंगी... कल ही...
हीरक जयन्ती स्मारिका
विद्वत् खण्ड / ५९
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