Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 16
________________ जैन विद्या के समर्पित डॉ. सागरमल जैन एक परिचय डॉ.सागरमलजी जैन का जन्म सन् 1932 में शाजापुर में हुआ। 18 वर्ष की अवस्था में ही आप व्यवसायिक कार्य में संलग्न हो गये। आपने व्यवसाय के साथ-साथ विशारद, साहित्यरत्न और एम. ए. की उपाधियाँ प्राप्त की। उसके अनेक वर्ष पश्चात् अध्ययन रूचि को निरन्तर जागृत बनाये रखने हेतु व्यवसाय से पूर्ण निवृत्ति लेकर शासकीय सेवा में प्रवेश किया और रीवा, ग्वालियर व इंदौर में महाविद्यालयों के दर्शनशास्त्र के अध्यापक तथा हमीदिया महाविद्यालय भोपाल में दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहें। तत्पश्चात् पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान - वाराणसी के निर्देशक, अ.भा. जैन विद्वत् परिषद् के उपाध्यक्ष, अ.भा. दर्शन परिषद् के कोषाध्यक्ष और दार्शनिक' एवं 'श्रमण' के क्रमशः प्रबन्ध सम्पादक एवं सम्पादक रहें। आपका शोधनिबन्ध 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन दो खण्डों में प्रकाशित है। आपके 40 ग्रन्थ एवं 250 से अधिक उच्चस्तरीय लेख प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही शताधिक ग्रन्थों का कुशल सम्पादन भी किया है। प्रदीपकुमार रामपुरिया, स्वामी प्रणवानन्द डिप्टीमल, हस्तीमल स्मृति पुरस्कार द्वारा आपको पुरस्कृत किया गया है। आप विदेशों में व्याख्यानों के लिए शिकागो, राले, ह्यस्टून, न्यूजर्सी, वाशिंगटन, सेन फ्रांसिस्को, लॉस एंजिल्स, फनीक्स, सेंटलुईस, टोरण्टो, न्यूयार्क और लन्दन आदि नगरों का भ्रमण कर चुके हैं। आपका जीवन गंभीरता, सरलता, मधुरता, अनुशासनप्रियता, क्रियाशीलता आदि विशिष्ट गुणों का समन्वित पुंज है। इस 75 वर्ष की उम्र में भी लेखन, पठन, वाचन आदि की प्रवृत्तियाँ यथावत् जारी है। सम्प्रति प्राच्यविद्यापीठ, शाजापुर के संस्थापक एवं निर्देशक हैं। आपके मार्गदर्शन में अब तक 50 से अधिक शोधार्थी पीएच.डी. हेतु कार्य कर चुके हैं। यह श्रृंखला अधुनाऽपि गतिशील है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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