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इस कृति की प्रामाणिकता की पुष्टि की है तथा अनेको उपयोगी सुझावों से इसका गौरव बढ़ाया है।
साथ ही सुप्रसिद्ध अनुभवी वास्तुशास्त्रीद्वय पं० बाहुबलि जी उपाध्ये एव पं० जयकुमार जी उपाध्ये ने इसका प्रायोगिक दृष्टि से भी तुलनाकर निरीक्षण किया है और इसकी व्यवाहारिक उपयोगिता प्रमाणित की है, अतः उक्त दोनों विद्वानों का भी हृदय से आभार मानता हूँ।
साथ ही निर्दोष लेज़र टाईपसैटिंग के लिए प्रिंटैक्सेल, नई दिल्ली एवं अल्पावधि में आकर्षण मुद्रण के जे०के० ऑफसेट प्रिंटर्स, दिल्ली धन्यवादाह है ।
अन्य भी अनेको सहयोगीजनों का नैष्ठिक सहयोग इस कार्य में निमित्त बना है, उन सभी को भी धन्यवाद देता हूँ ।
यह पुस्तक इस विषय की प्रवेशिका मात्र है, दिगम्बर जैन ग्रन्थों मे इस विषय मे अनेकत्र बहुत-सी सामग्री भरी हुई है । आशा है विशेषज्ञ विद्वान् एवं समर्पित अनुसन्धाताओं के लिये यह पुस्तक नवीन संभावनाओं के द्वार खोलेगी तथा उन्हे दिशा देने का अच्छा निमित्त बनेगी।
इस समस्त कार्य के निष्पादन में मूल निमित्तकारण पूज्य आचार्यश्री विद्यानंदजी मुनिराज का मगल आशीष ही रहा है, अतः उनकी अत्यन्त विनयभाव से कृतज्ञतापूर्वक वन्दना करता हूँ।
सुप्रसिद्ध विदुषीरत्न स्वर्गीया श्रीमती रमारानी जैन ने 'भारतीय ज्ञानपीठ' जैसी सारस्वत सस्था का निर्माणकर गौरवशाली एवं भारतीय सस्कृति के प्रतिनिधि साहित्य के प्रकाशन का पुण्यद्वार उद्घाटित किया; अतः उन्हीं की पुण्य स्मृति मे यह कृति उन्हे समर्पित करता हूँ।
जैन वास्तु-विद्या
सुरेशचन्द जैन मत्री श्री कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली