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. श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह क्षेत्र है। वह सादि सान्त है । जीव का काल अगुरुलघु पर्याय से अनादि अनन्त है । परन्तु अगुरुलघु की उत्पत्ति
और नाश सादि सान्त हैं। जीव का स्वभाव गुण पर्याय अनादि अनन्त हैं। धर्मास्तिकाय में स्वद्रव्यादि से चोभङ्गी
धर्मास्तिकाय का स्वद्रव्य अनादि अनन्त है। स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश लोक परिमाण सादि सान्त है । स्वकाल अगुरुलघु से अनादि अनन्त है । किन्तु उत्पाद व्यय की अपेक्षा से सादि सान्त है । स्वभाव गुण चलन सहाय अनादि अनन्त है । परन्तु देश प्रदेश की अपेक्षा सादि सान्त है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय में भी समझ लेना चाहिये। आकाशास्तिकाय में स्वद्रव्यादि की चौभङ्गी
आकाशास्तिकाय में स्वद्रव्य अनादि अनन्त है। स्वक्षेत्र लोकालोक परिमाण से अनन्त प्रदेश अनादि अनन्त है। स्वकाल अगुरुलघु गुण अनादि अनन्त है परन्तु उत्पाद व्यय की अपेक्षा सादि सान्त है। आकाश के दो भेद हैं । लोकाकाश और अलोकाकाश । लोकाकाश का स्कन्ध सादि सान्त है । अलोकाकाश का स्कन्ध सादि अनन्त है। यहां पर कोई ऐसी शंका करे कि अलोकाकाश को सादि कैसे कहा जा सकता है, क्योंकि उसकी आदि कहीं है ही नहीं । इसका समाधान यह है कि जिस जगह लोकाकाश का अन्त है उस जगह से ही अलोकाकाश शुरू होता है। इससे उसकी आदि है। इसीसे सादि अनन्त कहा गया है।