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॥ श्री वीतरागाय नमः ॥
जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला
द्वितीय भाग
णमो अरहताणं, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूण ॥ १ ॥
मंगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दायें जैन धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ २ ॥ आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम् । परभावस्य कर्तात्मा, मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ॥ ३ ॥
अज्ञान तिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ ४ ॥
उपादान निज शक्ति है जिय को मूल स्वभाव । है निमित्त पर योग तें वन्यो अनादि बनाव ॥ ५ ॥
उपादान अरु निमित्त ये सब जीवन पै वीर । जो निज शक्ति सम्भाल ही सो पहुंचे भवतीर ॥ ६ ॥
देव गुरू दोनो खड़े किसके बलिहारी गुरुदेव की भगवान दियो
करुणानिधि गुरुदेव श्री दिया ज्ञानी माने परख कर, करे मूढ
लागू पांव | बताय ॥ ७ ॥
सत्य
उपदेश । संक्लेश ॥ ८ ॥