Book Title: Jain Shodh aur  Samiksha
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 10
________________ REATMENT Parti t era : - - - - murar CAREERS 'स्वाध्याय' का महत्व सर्व विदित है। स्वाध्याय ज्ञान की उपासना है। ज्ञानवान होकर चारित्र्य का पालन यथाशक्ति करना मानव का कर्तव्य-धर्म है। संसार और संसार से परे का ज्ञान-विज्ञान ग्रंथों में संजोया हुआ है। जो प्रतिदिन उस ज्ञान में से थोड़ा-थोड़ा भी संचय करता है, वह श्रीमान्, बहुश्रुत, स्व-समयी, ज्ञानी और वाग्मी बन जाता है। 'बूंद-बूंद जल भरे तालाब' (थ में थे वें तले सांचे--मराठी ) अर्थात् बूद-बूंद पानी से तालाब भर जाते हैं। स्वाध्याय का नियम लेकर नित्य अध्ययन शील को सम्यग विद्या की निधियाँ मिल जाती हैं। स्वाध्याय चित्त को एकाग्र, एतावता प्रात्म को बलवान बनाता है। पवित्रता प्रदान करता है और परिणामों की विशुद्धि करता है। स्वाध्याय रूपी चिन्तामरिण जिसे मिल जाती है, वह कुबेर के रत्नकोषों को पराजित कर देता है। ज्ञान के क्षेत्र में नया उन्मेष और ज्ञान-विज्ञान की खोज में स्वाध्याय ही प्रबल कारण है। डॉ० श्री प्रेमसागर जैन का प्रस्तुत "जैन शोध और समीक्षा" ग्रंथ इस दिशा में भाषा-शास्त्रियों के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। लेखक ने ग्रन्थ को कई प्रकरणो में संजोकर विभिन्न बातों पर प्रकाश डाला है, इससे पाठकों को अनुकूल ग्राह्य-सामग्री पर्याप्त मात्रा में मिल सकेगी। इस दिशा में लेखक और श्री महावीर जी क्षेत्र के मंत्री, श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दूका तथा प्रबन्धक महोदयों का प्रयत्न अनुकरणीय एवं सराहनीय है । पाशीर्वाद ! मुनि विद्यानन्द SANEMA 5555555

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