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जैन साहित्य संशोधक.
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ओक के अमने वेतालपुर नगरमा देवीना बाळ दान माटे पकड्या हता त्यांथी असे नासां आवेला छीए. ते नगरना लोको हिंसालु छे अने शोणितप्रिया नामनी तेमनी देवी थोडा काळनी सिद्धिने माटे महिषनो अने वधारे मारे माटे सिद्धि मनुष्यनो बलि मागे छे. गुणसुंदर त्यां गयो अने बॉल आपता लोकोने नसाडीने माणसने बचाव्यो. कुमारेपछी देवी समक्ष पोताना कंठे खडग धर्यु. देवीए तेनो हाथ पकड्यो. देवीने प्रतिबोधीने जीवहिंसा
[ खंड १
बंद करावी. अंते आराधनाथी मृत्यु पाम्यो. कालिकाचार्ये कहां के तुं जीवदया तथा अभयदानथी आ जन्ममां पराक्रम, तथा मुनिने दान आपवाथी भोग पाम्यो हुं. सदयवत्सने जातिस्मरण थयुं. सदयवत्स श्रावक धर्म आराधीने स्वर्गे गयो आवती उत्सर्पिणीमां मोक्षं जशे . आ कथा रत्नशेषरना शिष्य हर्षवर्धनागणिये रचेली छे. रच्या संवत् आपेली नथी पण सं० १५१० - ३० ना अरसामां रचायेली होवी जोइए.
डॉ० हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना.
( प्रथम भाग - चालु. )
अनुवादक - श्रीयुक्त अंबालाल चतूरभाई शाहा, बी.ए.
[ प्रथम भाग ( अंक २ ) ना पृष्ठ ९७ उपर अपूर्ण रहेली प्रस्तावनानो आ अवशेष भाग छे. एकरीते आ ते प्रस्तावनानुं परिशिष्टज छे. कारण के एना मूळ लेखके एने तेज रूपे लख्युं छे. आमां आचारांग अने कल्पसूत्र एम बे जैन सूत्रोनी रचनाशैली विगेरेनुं वर्णन करवामां आयुं छे. - संपादक. ]
हवे आ पुस्तकमा जे वे सूत्रोनुं भाषांतर करवामां आवेलं हे तेना विषयमां वे शब्दो लखवा जेटलं माझं कर्तव्य बाकी रह्युं छे.
प्रथम सूत्रनुं नाम आचारांग सूत्र छे जे केटलीक वखते सामायिकना नामे ओळखाय छे. ए सूत्र ११ अंगो पैकीनुं प्रथम अंग है. जे चार अनुयोगो अर्थात् विषयां सर्व सिद्धान्तो विभक्त थपला छे तमांना चोथा अनुयोगना विषयभूत गणाता आचारनुं आ सूत्रमां वर्णन करेलुं छे. चार अनुयोगोनां नाम आ प्रमाणे:--धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग अने चरणकरणायोग. आ सूचना बे श्रुतस्कन्धो हे जे परस्पर भाषाशैली
तथा वर्णनपद्धतिमां एक बीजाथी घणाज भिन्न पड़े छ. बीजा श्रुतस्कन्वना पेटा-विभागोने चूलाओ अर्थात परिशिष्टो कहेला छे. आ उपरथी प्रथम श्रुतस्कन्ध ज वास्तविक प्राचीन सूत्र होय तेम जणाय छे. आवोज मत प्राचीन समयमा पण प्रचलित हतो, तेनो पुरावो आ सूत्रनी विद्यमान एवी सौथी प्राचीन टीकामां करेली सूचना उपरथी स्पष्ट मळी आवे छे. सामान्य रीवाज प्रमाणे दरेक ग्रंथमां आदि, मध्य अने अंत एम त्रण प्रकारां मंगल-कथनो मानवामां आवे छे, ते अनुसारे शीलांकाचार्ये पोतानी टीकाम आ सूत्रना पण त्रण मंगलनो उल्लेख करेलो छे. तेमां आदि मंगल तरीके तो प्रथम श्रुतस्कन्धना प्रथम अध्ययनना पहेला उद्देशकना प्रारंभिके वाक्यने, मध्य मंगल तरीके पांचमां अध्ययनना पांचमां उद्देशकना प्रथम वाक्यने अने अंत मंगल सोळमी
१ आ टीका कांई पहेलीज टीका छे एम नथी. कारण के शीलांगाचा पण पोतानी टीकामां गंधहस्तिनी टीकानो उल्लेख करेलो छ
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