Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 213
________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना दुधी जणावे छे के वैशेषिक दर्शन स्थापनार तेमना मत- जेनुं संस्कृतरुप षडुलूक थाय छे. तेमा घुबड अने घj नो ज एक कौशिक गोत्रीय छलुय रोहगुत्त नामनो करीने काणादोनु सूचन थाय छे ए खलं छे, परन्तु निन्हव हतो जेणे वि. सं. ५४४ (इ. स. १८ ) मां उलूक शब्द जैनोए रोहगुत्तना गोत्रने अर्थात् कौशिकने त्रैराशिक मत नामनो छठो नैन्हविक संप्रदाय स्थाप्यो उद्देशीने लखेलो होय तेम जणाय छे. कौशिक शब्दनो हतो. आ दर्शन- जे वर्णन अवश्यक सूत्र VV.77-83 अर्थ पण घेवड ज थाय छे. परन्तु आ बाबतमां जैनोनी मां आपलं छे ते वाचवाथी जणाय छ के ते सघठं वर्णन दंतकथा करतां सर्वब्राम्हणसंमत परंपरा वधारे पसंद कणादना वैशेषिक दर्शनमाथी लीधेलु छे. कारण के तेमा करवा लायक होवाथी, आपण जैनोना परंपरागत कथ. ( सात नाही पण ) छ पदार्थो अने तेना पेटा भेदानुं नने एवी रीते समजावी शकीए के रोहगुत्ते आ वैशेषिक वर्णन आपेलु छ। अने आ उपरान्त गुणना वर्गमां (२४ दर्शनने नवु प्ररूप्युं न होतुं परंतु पोताना नैन्हविक विचानहीं परन्तु ) १७ वस्तुओन वर्णन करवामां आवेलुं छे; रोने समर्थित करवा वैशेषिक मतनो मात्र अंगीकार जे वैशेषिक दर्शन १.१.मां आपेली हकिकत साथे कया हता. बराबर मळी रहे छे. आ भागमां भाषांतरित करेलां उत्तराध्ययन अने सूत्रमारुं मानबुं छे के, जैनो अनेक बीजी बाबतोनी मा __कृतांग सूत्रना विषयमा प्रो. वेबरे Indische Studien, फक, हिंदुस्तानना प्रत्येक प्रसिद्ध पुरुषने पोताना धर्मना . Vol. XVI. p 25uff अने Vol. XVII, p 43ff. इतिहास साथ जोडी देवानी बाबतमां पोताने घटे तेना मां जे लख्यु छे ते उपरान्त मारे कांई विशेष उमरेवानु करतां अधिक माननो हक करे छे. उपरोक्त जैन दंत. सो पोन न. नथी. आ बन्नेमां, सूत्रकृतांग ए बीजं अंग गणाय छे कथाने असत्य मानवामां मारां कारणो नीच मजब के:- अन जैन आगमोमां अंगोने प्रथम-प्रधान-स्थान वैशेषिक दर्शन वास्तवमां एक आस्तिक ब्राह्मण दर्शन आपवामां आवे छे,तेथी ते उत्तरायध्यन सूत्र, के जे प्रथम मनाय छे अने ते मुख्यत्वे करीने स्वधर्मचुस्त हिन्दुओ मूळ सूत्र गणातुं होई सिद्धान्तमां तेने छेल्लुं स्थान मळेलु द्वारा विकसित थयुं छे. आम होवाथी तेमणे सूत्रकार छे, तेना करतां वधारे प्राचीन छे. चोथा अंगमां आपेला मुंबे नाम तथा काश्यप एवं जे गोत्र बताव्यं के सिद्धान्तोना सार उपरथी जणाय छे के सूत्रकृतांगनो ते संबंधमां तेओ असत्यालाप करे छ, एवी शंका कर मुख्य उद्देश नवीन साधुओने विरोधी आचार्योना वानुं जराए कारण जणातुं नथी. अने बीजु ए के समग्र पाखडी मतोथी संरक्षित राखवानो अने ते रीते सम्यब्राह्मण साहित्यमां एवो क्यांए उल्लेख मळी आवसो नथी दर्शनमा स्थिर बनावी तेमने परमश्रेय प्राप्त कराववानो के वैशेषिक दर्शनना कान खरूं नाम रोहगुत्त हतुं तथा छ. मा हकिकत एकंदर साची छे, परन्तु सर्वांगपूर्ण नथी; तेनुं गोत्र कौशिक हतुं. तेम ज रोहगुत्त अने कणाद ए आपणे आ पुस्तकनी शुरुआतमां आपेली विषय सूचि ए बन्ने नामो एक ज व्यत्तिानां होय तेम पण मानी उपरथी जोई शकीए छीए. ग्रन्थनी शुरुआतमा विरोधी शकाय नहीं, कारण के तेओना गोत्र स्पष्ट भिन्न भिन्न मतोनुं निराकरण आपवामा आलुं छे अने तेनो ते ज जोवामां आवे छे. 'कणादनो अनुयायी ते काणाद' विषय फरीथी अधिक विस्तार साथे बीजा श्रुतस्कंधना ए शब्द, व्युत्पत्तिशास्त्रना अभुसारे काक-मक्षक एटले , प्रथम अध्ययनमा चर्चवामां आवेलो छे. प्रथम श्रुतस्कंबुवड वाचक छ; अने एथी ते दर्शन- उपहासात्मक नाम २ अक्षरशः-छ घुबड, आ शब्दनो पहेलो 'छ' शब्द वैशे. औलूक्य दर्शने षडेलु छे. रोहगुतनुं बीजुं नाम छुलुय छे, षिक दर्शवना छ पदार्थोनो सूचक छे. ३ माग १, पृ० २९०; परन्तु प्रो. ल्युमन 1. c. p. 121. उपर भाषान्तर करेली एक दंतकथामां तेनुं गोत्र 'छऊलू तरीके . १ जुओ, कल्पानी मारी आवृत्तिनु पृष्ठ. ११९ लख्थु छे. Aho! Shrutgyanam

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