Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 247
________________ ४] आगरा संघनो सचित्र सांवत्सरिक पत्र wwwwwwwwwwwwwww.aanwarunawunivHAANVarunuwannivwwwwww (५३) उसता सालीवहण पातिसाही चित्रकार छै तेण तीण समै देष छै ईसाही ईण चि(५४) त्र माहे भाव राष छै सु लेष देष प्रीछजोः उसता सालीवहण वंदणा विनवी छै प्रछ जो (५५) ईह श्रीः पजुसण श्रीसतर भेद पुजा १५ सनाथदीन ६१ तप मासषमण १॥ मासषम(५६ ) ण १। पाषषमण तथा अठाई तथा दवदसम दसम अठम बीजाही तप घणा हुआ है. (५७) छमछरी पोसह त ९०१ सहमी वछल साः बंदीदासकैः चैमासा पाषी असटमी सदी सह(५८) मीवछल चाल छै पुजोजीका प्रसादथी अपरं ईह श्री जिन प्रासाद नवा संः चंदु करय छै (५९) प्रतीमा पीण माहासुदर हुई छै धणिनु पीणा प्रतीस्टाना घणार्ह छै श्रीपुजी जी आवै तथा (६०) श्रीआचारिजजी पधारतै जीणससणीना घणा उछाह होई सार संवना मनोरथ पैहचै । पुजीजी क्रिपाकर पधारजोः महो उपाध्याय श्रीसोमविजै पीण नेडा छै पुजी जलदथी लषी छै विचारी भला जाण तम लीजो जीम पुजी लीष तिम परमाण लेष प्रसाद वैगा मकुलजो रमावादः पं: श्री: माहानंद ठण ३ छै दील: री जेठठण २ छैः पारोःगणसरतनह ठण २ पहली चै पेरोजाबाद गणी धीमानंद रहथा विजा मतका आचारिज रहमाटः हीवक तै ते पाली (६५.) पढः हीवै चैमास पेरोजाबादकी पेतनी चीता करजोः पहले कैतही सात परहथा तै सरब मडराष (६६ ) हीवै भीषु षेत पाली न रह तीम करजोः सावीकानी वंदणा विनवि छै ते पीछजो सही चाणजो. ( ६७ ) संः विमलादे बाः साहाजदे बाः मीरघ बाः जादव [ पारमासहमनी वंदणा अवधारजो (६८) बाई कपुर दे बाः लाछ बाः मोतारा पयादी बाः जीवड दे १साः ताराचंद साः घेतावेद साः मोहील (६९)मणीक दे बाः कवर बा: सीरदे बाः भगत १ साः छीतु साः कासी साः वेणीदास (७०) बालादे वहुः मनोरथदे बाः गारबदे बाः राज १ साः सागर साः भैरू साः मणकचंद (७१) वहु केसरदे बाः होली बाः गरादे १ साः भोवाल साः ढोला साः डगर (७२) पुजीजी प्रतिस्टा उपरी वैग पधारजो ईहना संघना उतकंठा घणी छै ऐकवार तुमार चरण (७३ ) देष समसत संव संतोष पामः नहीतर महोउपाध्यनु आदेस देजो जीण सासणनी सो(७४ ) भा होई तीम करजो घण स्य लीषी अ पुजीजी ईहनी परचीता तुमन छे ते पीछजो (७५ ) संवतु १६६७ मीती कातीसुदी २ सुभदीने सोमवारे सुभं भवतुः लीः सीकह सा सुत. [उपरना लखाणर्नु हालनी भाषामां शुद्ध संस्कारी रूपांतर ] (१) स्वस्ति श्रीचिन्तामणिपार्श्वजिनं प्रणम्य श्री देवपाटण महानगरे शुभस्थाने, पूज्य आराध्य महात्मा, (२) उत्तम चारित्र पात्रशिरोमणि, कुमतान्धकार नभोमाण, कलिकाल गौतमावतार, सरस्वतीकंठाभरण, (३) चउदविद्यानिधान, एक विध असंयमना टाळणहार, द्विविध धर्मप्ररूपक, त्रण तत्त्वना जाण, चार कवायना(४) जीपक, पंचमहाव्रतना पाळणहार, छकायना पिता, सात भयना टाळणहार, आठ मदस्थानकना जीपक, (५) नववाड विशुद्ध ब्रह्मचर्यना पाळणहार, दशविध प्रमणधर्म प्रतिपालक, अग्यार अंग बार उपांगना जाण, (६) तेर काठियाना जीपक, चऊद भेद जीवना प्ररूपक, पंदर परमाधार्मिकना भेदना जाण, सोलकला Aho! Shrutgyanam

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