Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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अंक ४
तथा भिक्षुसंघ विना पण बौद्ध धर्मनी पतित अने विशीर्ण अवस्थामा पड्या रह्या के जेसने जोतां साधारण रीते पहेलांना जाहो जलालीवाळा बोद्धधर्मनुं भाग्ये ज कोई भान था. बौद्धधर्मना आ अवशेष रहेला उपासकोनी शोध करवानुं मान आपणा जोईन्ट फिलोलोजिकल सेक्रेटरी पंडित हरप्रसाद शास्त्रीने घटे छे. तेमणे ज प्रख्यात बौद्ध त्रयीमांना 'धर्म' ना अनुयायी तरीके ते लोकोने शोधी कहाड्या छे, अने १८९५ ना आपणी संस्थाना जर्नलमा तेमनी हकीकत प्रसिद्ध करी छे. आ लोको उपरथी ज धर्मतोला स्ट्रीट आवुं नाम वढायुं छे, तथा हनी पण जाऊं बाजार स्ट्रीटमां तेमनुं धर्मचैत्य मौजूद छे.
डॉ. होर्नलना जैनधर्म विषेना विचारो
बौद्ध धर्मना आ प्रकारना विनाशकाळ दरम्यान जैन धर्मनी स्थिति तद्दन जुदी ज हती. अने तेथी ते हजी पण निर्विघ्नपणे चाल्या करे छे तथा तेना साबुको अने श्रावकसंयो हजी पण पश्चिम तथा दक्षिण हिन्दमां अने बंगालमां दृष्टिगोचर थाय छे. तेमनी एवी एक संस्था आपणी नजीकमां आवेला माणिकतोला परामा ज मौजुद छे. जुना वखतनी धार्मिक भिक्षुसंस्था ओमांथी हाल जीवती जागती एवी फक्त ए एक जैनधर्मनी ज संस्था छे. अलबत् आवी ऐकांतिक संस्थाना इतिहासमांथी जनस• माजने रस पडे एवो खोराक तो भाग्ये ज मळी शके; तो पण जे एक बाबत आपणा ध्यान उपर खास घसारो करी शके छे ते ए छे, के आ धर्म पण श्वेताम्बर अने दिगंबर एवा बे पंथमां विभक्त थई गएलो छे. आ विभाग थवानुं कारण ए शब्द। उपरथी ज सूचित थाय छे. एडले के न्यूनाधिक वस्त्रो पहेरवाना विखवाद उपरथी आ भागों पडेला छे. आ उपरांत पाछळथी सिद्धांत अने प्रकियामां पण बेऊ संप्रदायो केटोक भेद थलो छे, पण 'ते जनसमाज माटे विशेष रसोत्पादक नथी. जैनवर्मना आ बने संप्रदाय विभक्त तेन ज विरोधी अवस्थामा रह्या करे छे. बेऊनुं साहित्य पण भिन्न छे; परंतु ' अंगो अने 'पूर्वो' ना नामे जे जुनुं धार्मिक साहित्य छे ते मात्र श्वेताम्बरानुं ज गणाय छे. वखत जतां आि भागोमांथी संप्रदायो अने साधुओना अनेक फांटा नि.
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कळ्या छे. बौद्धोनों तथा जैनोनो ऐतिहासिक शोख एकसरखी रीते वृद्धिंगत थलो छे.. तेओए नियमित रीते पोताना धर्माचार्यों तथा गुरुओनी पट्टावलीओ जाळवी राखेली छे, जेमांनी घणी खरी प्रो. बुल्हरे, डॉ. क्लाटे, तथा में इंडियन एन्टीक्वेरीमां अने एपिग्राफिआ इंडि कामां प्रसिद्ध करी छे. विशेषमां तेमना धार्मिक तथा अन्य पुस्तकोमां पण ऐतिहासिक बावतोनी नोधो वारंवार जोवामां आवे छे. आधी बाबतोने उपर्युक्त विद्वानो उपरांत प्रो. वेबर तथा प्रो. भाण्डारकरे पण जुदी जुदी काढीने संगृहीत करी छे. ए साहित्यमाथी हजी पण एवी घणी बाबतो तारवी कढाय तेम छे, जेनी ट्रंक रुप रेषा हुं अहिं नीचे वर्णवं छं.
महावीरनुं निर्वाण थयां पछी बीजा सैकामां- ई०स० पूर्वे लगभग ३१० मां-मगध देशमां एटले हालना वि हार प्रांतमां द्वादश वार्षिक दुकाल पड्यो. ते वखते जैनधर्म बिहारप्रांत ओळंगी बहार नीकळ्यो हतो एम जजाय छे. ते समये त्यांनो राजा मौर्यवंशीय चंद्रगुप्त हतो. तथा अद्यापि अविभक्त जैनधर्मना आचार्यपद पर भद्रबाहु प्रतिष्ठित हता. दुकाळनी आफतमां केटलाक साधुओं साथ भद्रबाहु दक्षिण तरफ कर्णाटकमा नीकळी गया अने मगधमां तेमनी जग्या स्थूलभद्र भोगववा लाग्या. लगभग दुकाळना अंतमां, पण भद्रबाहुनी गेर हाजरीमां, पाटलीपुत्र ( पटना ) मां एक सभा थई जेणे अग्यार अंगो तथा चौद पूर्वो के जेनो समावेश बारमा अंगमां थाय छे ते भेगां कर्यो. दुर्भिक्षना आपत्ति समयमां जे जे हरकतो पेदा थई तेनी असर जैन धर्मनी प्रकिया उपर पण थई. साधुओने माटे साधारण एवो नियम हतो के तेमणे नग्न ज रहेवुं जोईए, जो के अपवादरूपे केटलाक नबळा साधुओ अमुक वस्त्र पहेरेशनी रजा पण आपवामां आवेली हती. मगधमा रहेला ते केटलाक साधुओंने वखतनी जरुरीयात
४. जुओ प्रो. वेचरनुं 'फेटलाग ऑफ जैन मेन्युस्क्रीप्टस् ' १८८८ ने ९२; तथा प्रो. भांडारकरनी ररपोर्ट ऑफ धी सर्च फॉर मेन्स्क्रीप्ट १८८३-४ विशेष हकिकत माटे वळी जुओ. प्रो. जेकोबीनी जैनमुत्रौनी प्रस्तावना ( भाग २ )
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