Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 237
________________ अंक महावीर निर्वाणनो समय-विचार. अनुयायिओ तो थाय ज क्या थी. तेथी हवे सिद्ध छे के महावीर देवतुं निर्वाण जो उक्त कथन प्रमाणे थयुं होय, तो पछी तेमनी, बुद्धदेवनी साथे समकालीनता शी रीते मळी शके छ ?वळी एम पण कहेवामां आवे छे के महावीर अने बुद्धदेव बने अजातशत्रु (श्रेणिकना पुत्र ) ना राज्यकाळमां मौजुद हता, ऐतिहासिक उल्लेखो प्रमाणे अजातशत्रु बुद्धदेवना मूत्य पर्वे ८ वर्षे राजगादीए बेठो हतो अने तेणे एकंदर ३२ वर्ष सुवी राज्य कयु. आ रीते उक्त जैन गाथा ओ प्रमाणे जो महावीर निर्वाण मानवामां आवे तो आ हकीकत पण बंध बेसती आवे तेम नथी. तेथी या तो महा वीरनिर्वाणनो समय उक्त समयथी आ तरफ आणवो जोईए अने या तो बुद्धदेवनो निर्वाणसमय पाछळ हठाववो जाईए. परंतु बुद्धदेवनो निर्वाणसमय तो चोकस गणतरीए गणेलो छे अने महावीरनो समय मात्र अनुमानथी कल्पी लीधेलो छ, माटे तेने ६० वर्ष आ तरफ खसेडवानी जरुरत छ. आनी पुष्टिमां हेमचन्द्राचार्थना परिशिष्ट पर्व नुं कथन पण उपलब्ध छे आ विषयमां, आवी रीते, ए लेखमां ते विद्वाने वणा ज लंबाणथी चर्चा करी छे. उपर ज जणायु छ के, जैन इतिहासना माटे आ एक वणो ज अगत्यनो सवाल छे अने एना निराकरण उपर ज जैनधर्मना साहित्य अने इतिहासनी वास्तविक अने ऋमिक रचना रची शकाय छे, अने तेटला माटे, जैन विद्वानोए, ए बाबत खास प्रयत्न करवानी जरूरत हताः परंतु जोईए कीए के संख्य'बंध जैन आचार्यमाथी कोईए. पण, जमानी गादीना पोते वारस थवा जाय छ तेमनी, खरी तारीख खोळी काढया मटे जराए प्रयत्न कयों नथी. प्रयत्न करवानी वात तो द्र रही, परन्तु दुनियाना बीजा विद्वानो ए विषयमां शो बड-प्रथळ करी रह्या छे तेनी खबर सुधां मेकववानी दरकार करता नथी! अस्तुश्रीयुत काशीप्रसाद जी जायसवाल एम्. ए. ( आशफार्ड युनिवर्सिटी. ) बारिस्टर-एट-लॉ करीने पटनामा एक विद्वान् गृहस्थ छ. हिंदुस्तानना नामी ऐतिहासिकोमांना तओ एक छे. तेमणे भारतना प्राचीन इतिहाससम्बंधी धो ऊहापोह को छ अने केट लाक पाश्चात्योना भ्रांत विचारोनो क्षण ज उत्तमतापूर्वक संस्कार को छ अने अनेक ऐतिहासिक गुंचवाडाओ उकेल्या के. प्रसंगोपातथी महावीरना निवाण समयनो पण तेमणे केटलेक ठेकाणे उल्लेख करेलो छे, अने उपर जणाव्या प्रमाणे ए गुंचवायला कोकडाने पण खालवानो प्रशसनीय प्रयास करेलो छे. बिहार अने ओरीसा रीसर्च सोसायटीना सने १९१५ ना सप्टेंबर मासना जर्नलमां शैशुनाक अने मौर्य काल गणना ( Saisunakatund Mauyra Chronology ) विधये तेमणे एक घणो ज महत्त्वनो निबंध लख्यो छे. तेमा अंते बुद्ध देव अने महावीर देवना निर्वाण-समय, पण वणी ज विद्वत्तापूर्वक विवेचन कर्यु छे, अने जैनोनी प्राचीन गाथाओनी गणतरीने ज सप्रमाण सिद्ध करी, जे विद्वानो उर जणाव्या प्रमागे ६० वर्षनी न्यूनत आणता हता तेमनी दलला तोडा पाडवानुं प्रयत्न कर्यु छे; तथा जैन, बौद्ध अने हिंदुओना ग्रंथोना प्रामाणिक आधारोने लईने तेमणे पातानां कथनने पुष्ट बनाव्य छे. हालमा ए विद्वाने एक अत्यंत महत्वना ऐतिहासिक लेखन संशोधन करी उक्त जर्नलनां छेल्ला अंकमां प्रकट कों छ. ए लेख ते सुप्रसिद्ध सम्राट् खारवेलनो उदयगिरिनी हाथीगुहावालो लेख छ, जे में. डॉ. भगवानलालजीनी संशोधित करेली आवृत्ति प्रमाणे गये वर्षे गुजरातीमां बहार पाड्यो छे. डॉ. भगवानलालना संशोधनमां थोडा वर्ष उपर डॉ. फलीट विगेरे पुरातत्त्वज्ञोए शंका करी हती, अने कोई अधिकारी विद्वानना हाथे ए लेखनुं पुनः अव. लोकन थवानी जरूर जणावी हती. ते कार्य श्रीयत जायसवाल महाशय पूर्ण कयु छे अने ए लेखनी घणी ज सूक्ष्म बुद्धिी छानवीन करी तेनी उत्तम आवृत्ति प्रसिद्धिमा मूकी वणा नवा तत्वोनुं उद्घाटन कर्यु छे. ए लेखना एक बे भागा संबंधमां मारी सायं पण तेमणे केटलोक रसभर्यो पत्रव्यवहार चलायो हतो. तेभना ए लेख-संशोधनथी जैनधर्मना तत्कालीन इतिहास उपर डॉ. भगवानलाल करतां पण वधारे प्रकाश पडयो छे अने समुच्चय भारतीय केटलेक ठेकाणे Aho ! Shrutgyanam

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