Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 225
________________ अंक ४] अहिंसा अने वनस्पति आहार ५. जीवविचार तथा अन्य ग्रन्थोने आधारे तेभो अर्थ वनस्पती १७. प्रो. जेकॉबीए तेनो अनुवाद कर्यो छे. सेकेड बु० ई० पु. अने चारभूतो सिवाय अन्य सर्व एम थाय छे. ४५, पा०२४३ तथा ४१५ ६. अमितगतिनुं सुभाषितसंदोह, ३१, ४, ५, तथा २९, ८, ९, १८ पूर्वपक्षीए शंका उठावी छे ते प्रमाणे शक्य नथी. विरुद्ध. ७. अमितगतिनुं सुभाषितसंदोह, २२, २, पक्षमा बंधबेसता दृष्टान्तनुं विचित्र रूपांतर करवाने बदले लेखके " , २२,३ एटलुज कह जोईतुंहतुं के भूलथी हणेला प्राणीने खावामा कांई ९. सरखावो, डयूसेननुं Gcschich teder Philosoh पाप नथी. hie, I,९, पा० ३४०. 'भिक्षा' ना अर्थ उपर तेनो आधार छे. १९. “मत्स्यमोस" ओल्डनबर्ग, परंतु सरसावो अगुत्तर नि १० ल्युद्धर्स, Lineindische Speiserecel.जर्मन काय ३, १५१, ' न मच्छं न मसं.' ओरिएन्टल सोसायटीनुं जनल १९०७ पा० ६४१ २०)नी अन्य सूचना विषे जणावे छे. ११. याज्ञ०१७ १७७, वसि०१४, ३९, गा० १७,२१, मनु०५ १ ओल्डनबर्गन विनयपिटकम्, पु०२, पा.८१ डीप. १८, आप० १, ५, १७, ३७, विष्णु० ५१; ६. २२. आस्थर मूळमां कस्सप छे.पण ते काई खाम नोंधवा जेवी १२ Schrader. Die Fragen des Koenigs बाबत नथी.कारण के सगळा बुद्धोनो लगभग सरखा ज उपदेश छ Menandros परिशिष्ट, पा० २७ २३. दुष्ट ब्राह्मग. १३. पहेलां घणी वखत आ प्रमाणे करवामां आव्यु हतुं तेम; ४ RhysDavids, Buddhism, 8th ed. जुओ उपर. १४. अल्पदोषमिह ज्ञयम् (१३, ११५, ४५). पा० १३१, तथा सॅक्रेड बु० ई०, ०,१०. पा. ४०, ४१ १५. आ रिवाजनी तरफेणमां तेम ज विरुद्धमा घणु लखायु छ, २५. सुचनिपात १३, १० तथा अन्य स्थळे. जुओ महामहोपाध्णय हरप्रसादशास्त्रीनु Notices on San. २६. महावग्ग, ३, १. Mss.,1907,p, .घणे भागे आ बाबतमा मध सुधारक हता. २७ चुल्लवग्ग, ५, ५,२ ( सरखावो. ओल्डनबर्ग, पा. ७५) महाभारत १३, ११५, ५६ मा जणाव्यु छे के " पूर्वकल्पमां यज्ञपशु २८. आ उपरथी एबुं अनुमान करवू न जोईए के जे चुन्दनी चोखामा लोटने (व्रीहिमय ) बनावता, अने ते वडे शुभ लोकनी पासेथी तेमने छेवटनी भिक्षा मळी हती ते बौद्धेतर तथा मांसाहाइच्छावाळा पुरोहितो यज्ञ करावता एम कहेबाय छे." तेज स्थळे री हतो. केवी जातनो खोराक बनाववो ए निश्चय नहीं करी शक ६३ मा श्लोकमां जैनधर्मनी असर जणाय छे ज्यां भीष्म मधु मां- बाथी तेगे एक पाडोशीने मोकल्या हतो. अहीं खास जाणवान सनो उपयोग करवानो निषेध करे छे. ए छे के आ फकरामां (४.१३-२०) चन्द शब्द ज वपराएलो १६ ' Die Dharmapariksha des Amitag. छ, तथा तेने 'लुहाग्ना पुत्र' तरीके ओळखाव्यो छे; परंतु आati, Leipzig' 1905 मां एम्० मीरों नोए तेनु पृथक्करण गळ उपर तेने 'आबुसो' (४२) तथा 'भिक्खु (४१) पण कर्यु छे., पा० ३८. कहेलो छे. Aho! Shrutgyanam

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