Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ जैन साहित्य संशोधक | १४० ९७८ और ९८४ ईस्वीके अन्तर्गत कालमें इस मूर्तिका निर्माण हुआ होगा । बाहुबली चरित्रमें एक श्लोक है जो मूर्तिस्थापनका ठीक ठीक समय बताता है । वह श्लोक इस प्रकार हैकल्क्यब्दे षट्शताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे, पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे । सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोमटेश - प्रतिष्ठाम् || ” अर्थात्–श्रीचामुण्डरायने बेलगुल नगर में कुम्भलग्न में, रविवार शुक्ल पक्ष चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन विभवनाम कॅल्कि संवत्सर ६०० के प्रशस्त मृगशिरा नक्षत्र में, गोमटेशकी प्रतिष्ठा की । यदि हम उपरोक्त तिथिको यथार्थ मान लें, क्योंकि सम्भव है ऐसे उत्तम मुहूर्तमें ऐसा बडा कार्य किया गया हो, तो हमें यह निकालना पडेगा कि ९७८ और ९८४ ईस्वी अन्तर्गत किस दिन यह सब योग पडते थे । हमने भलीभांति सावधानीसे ज्योतिषकी रीतियोंके अनुसार सर्व सम्भाव्य तिथियोंको जांचा है और उसका परिणाम यह निकलता है कि रविवार ता० २ अप्रैल सन् ९८० ई० को मृगशिरा नक्षत्र था और पूर्व दिवससे ( चैत्रकी बीसवीं तिथि ) शुक्ल पक्ष की पंचमी लगगई थी, और रविवारको कुम्भ लग्न भी था । अतएव जिस दिन चामुण्डरायने मूर्त्तिकी प्रतिष्ठा की उसकी हम यही तिथि मान सकते हैं परन्तु उपरोक्त श्लोक में एक बात है जो प्रथम बार देखनेसे इतिहासके विरुद्ध जान पडती है । इस लोक में यह कहा गया है कि कल्क्यब्द ६०० विभवनाम संवत्सरमें गोम्मटेश्वरकी मूर्त्तिकी प्रतिष्ठा हुई । शक सम्बत् महावीरके निर्वाणके ६०५ वर्ष ५ मास पश्चात् प्रारम्भ होता है" और कल्कि संवत् शक संवत्के [ खंड १ ३९४ वर्ष ७ मास अनन्तर प्रारम्भ होता है । अर्थात् वीरनिर्वाणके १००० वर्ष अनन्तर कल्कि संवत् आरम्भ होता है । अतएव, कल्कि संवत्का आरम्भ ४७२ ईस्वीसे होता है । इसलिए कल्कि संवत् ६०० ( ४७२+६०० ) १०७२ ईस्वी सन् होगा । परन्तु यह बात इतिहासके विरुद्ध है, क्योंकि राजमल्ल द्वितीयका शासन सन् ९८४ ईस्वी में समाप्त होता है । इसके अतिरिक्त ज्योतिष गणनासे भी यह ज्ञात होता है कि कल्कि संवत् ६०० में चैत्र शुक्ल पक्षकी पंचमी तिथि, चैत्रके तेईसवें दिन शुक्रवारको पडती है, जो उपरोक्त श्लोकसे विरुद्ध है क्योंकि उसके अनुसार उस साल चैत्र शुक्ल पंचमीको रविवार था । ३८ देखो, नैमिचंद्र रचित त्रिलोक सारका निम्न उल्लेख'पण छ सयवस पण मासजुदं गमिय वीरणिवुइदो सगराजा ॥ र्थात् वीरनिर्वाणके अनन्तर ६०५ वर्ष और ५ मास व्यतीत होने पर शकराजा हा । ( इन्डियन एन्टीवरी, भाग १२, पृ. २१.) अतएव कल्कि संवत् ६०० का अर्थ कल्कि संवत्की छठी शताब्दी लेना चाहिए । विभव संवत्को ८ वां मानना चाहिए जिससे इतिहासानुसार ठीक ठीक बैठे । इसलिए विभवनाम कल्कि संवत् ६०० के अर्थ लेना चाहिए कल्कि संवत्की छठी शताब्दीका ८ वां वर्षअर्थात् ५०८ कल्क्यब्द । यदि हम इस तिथिका स्वीकार कर लें तो ठीक ९८० ईस्वीको यह सम्वत् पडता है और श्लोकमें वर्णित सर्व ज्योतिषके योग भी मिल जाते हैं । अतएव अब हमारे माननेके लिए दो मार्ग हैं । प्रथम; कि हम बाहुबली चरित्रके श्लोकको इतिहास - विरुद्ध कहकर प्रमाणित न माने, या जैसा हमने किया है वैसा उसका अर्थ लगावें, जिससे वह शिलालेखकी तिथिसे मिल जाय । और हमारी समझमें तो दूसरा मार्ग ग्रहण करनाही सर्वोत्तम है । नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती | अब हम द्रव्यसंग्रहके लेखक के सम्बन्धमें समस्त प्राप्य सामग्री एकत्र करनेका प्रयत्न करेंगे । इस ग्रन्थके अन्तिम लोकसे यह पता लगता है कि इसके रचयिता मुनि नेमिचन्द्र थे । " बाहुबली चरित्रमें यह लिखा ३९ देखो, द्रव्यसंग्रह (श्लोक ५८ ) - 6 'दव्वसंम्यहमिण मुणिणाहा दोससंचयचदा सुदपुण्णा । सोधयतु तणुसुचधरण णेमिचंदमुणिणा भणियं जं ॥ ' Aho ! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252