Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 189
________________ मंक ४] एक एतिहासिक पत्र ranamannarian बीजू मेवाड राज्यना घणा खरा कर्मचारीओ जैनी ओस- मांथी जो आवी जातना साहित्यनी शोध खोळ करवामां वाळ ज वधारे हता, एथी तेमनी मारफते यति-साधुओनी आवे तो एमांथी अनेक प्रकारना एवां ऐतिहासिक साधपाने एवी बातोना विश्वसनीय खबरो विशेष रूपमा आवे ए नो मळी शके के जे धर्म अने देश एम उभय दृष्टिथी बहु पण स्वाभाविक छे. यतिवर्गना अधिकारवाळा जूना भांडारो- महत्त्वना थई पडे तेम छे.-संपादक ] ॥ ० ।। स्वस्ति श्रीपार्श्व परमेश्वरं प्रणम्य श्रीमति तत्र श्रीजीदुआरातो से । ऋषभविजयस्सानदेन लिखत्यपरं वंदणा १०८ वार अवधारवीजी. अत्र सुष व श्रेय छई तथा श्रीपंडितजीना सुख पत्र देई हर्ष पोष करवाजी. अपरं श्रीपंडितजी परमेष्ट श्रेष्ठ सकल गुणगरिष्ठ विद्वज्जन वरिष्ठ संत दंत सज्जनसिरोमणि कृपानिधान सर्वत्र राजसभायां लब्धसन्मान गुणालंकृत परम प्रीतिपात्र गुणग्राहक मोटा सत्पुरुष छो. सेवकोपरि सदा हितप्रीति सुदृष्टि राषो छो तिमज राषवीजी. जे दिवसै श्रीपंडितजस्युि मिलस्युं वातो करस्युं ते दिवस घणुं सफल करी जाणस्युं जी. अपंच गत वर्षे पत्र १ श्रीपंडीतजीनो गोढवाडनो, एक अनुचर हस्ते श्रीजीदुआरामें आव्यो हतो, वैशाष द्वितीय मैः ते हस्ते पत्र १ श्रीपंडितजीना नामनो...हस्ते मूक्यो हतो ते पोहताना समाचार नाव्याजी: बीजु ईकतीसानो चोमासो श्रीजीदुआरै थयाजी: उदेपुरमै ठाणु २ बैठा राख्या छे: वस्तुभाव कुशल घेमै रह्यौ छै: ओर सर्वस्थानक नष्ट थया पिण आपणो आलय कुशल घेमे रह्यो छेः भगवान राष्यो छे; माल्यानो साजबाज भंडाऱ्या मध्ये मूकी वे मालिम करी ने हुं श्रीजीदुआरे आव्योः सर्व वणिक दिसोदिस नीकले गयाः सकल साधासु दखल थई. सात दिवस फतेषांन मावथनी ओरीयै ठाणुं १५ संघातै बैठा रह्याः सर्व महाजन चोरासीगच्छना मिली राद्य सहस्र तृक दीधा पंडित जमान थयो त्यारै सातमे दिवस घडी २ दिन रहते अठे आव्या. सर्व श्रावक साथे पंडित साथै आवी साधांने पारणो व्योः पछे वणिक पिण नीकल्या ने अमे पिण नीकली आघाट आव्याः मास बे तिहां रह्याः तिहां पिण पंडितजीनो कारण संघीइ लोप्युं त्यारै पंडित जाबतो करी नाथदुआरे पोहचता कन्या, हवै रावत अर्जुनसिंघजी मैहतो लषमीचंद विजैसिंघ नाणाविटी दिषणीना पंडित रूपनगर वालानो कामदार देवीदास मुंणोत मिली उदेपुर आव्या; च्यार लाष रुप्या जूना देई ने संधी (सिंधी-काबुली) सर्व ने बारे काढ्या छः दीवांण हमीर पासे रजपूतनो साथ मूकी संघनी चोकी रावला माहिथी घणा कष्टथी काढी छः हवे सतानी ठठ्यारडानै थई छै जीः त्वारांनो जोर घणो वधी गयोः सहिर मध्ये नोग्यारो कोडां पांनै पड्यो; सर्व षोदे घणे ग्यारो ग्राह्य कीधो; हजी हजार ५० जूना देणा छैः ते दीधे सर्व नीकलस्यैः पंच महाजन नाडोल हता ते रावत अर्जुनासिवना पत्रथी आव्या छः वराड फेर हजार २८ नो नांध्यो छेः रुप्या हम्मीरसाई उदेपुरमै नवा पडे छेः टका २० चाले छेः ते दीधे संधीनो काटलो कटस्ये त्यारै लोक उदेपुर मै पाछा आवश्ये जी: हजी देशनो बिग्रह मिट्यौ नहीं छैः दोय राणा छैः हमीरजी तो अडसीने पाट उदेपुर मै छे: रतनसिंध कुंभलमेर मै बैठा छे: जोगी साबत छे; गोढवाड विजेसिंघजी ने छः चीतोड, मांडलगढ, उदेपुर, राजनगर; ए जायगां राणा हमीरजीनो अमल छे. सेरोनलो, कुंभलमेर, कैलवाडो, देवगढ रतनसिंघजीनी अमल छै: देश मै लूटा घोसो पकडणो मारणो आमो सामो लागे रह्यो छे; नाथदुआरे महाराजनी फोज हजार बारेसे पड्या छः ते तिमज छे: महाराज विंजैसिंघनी फोज राघोदास मिली देवसूरी वाला ऊपरे आव्या हताः वास राट धूलधाणी मिली पिण देवसूरीवालो महाराजसुं नम्यो नही, सोलंधीनो मजो रह्योः फोज झषमारे पाछी गई. ढाणां मै बैठो छैः नाल देवसूरीनी कोई छोडी नहीं: बीरम मेडत्यो चांणोदवालो जोधपुर चाकरी मै पड्यो रडवड़े छेः सोलंधी नी टेक घणी रहीः रांडने पगे लागो तथा विजेसिंघने पगे लागोः चाकर चितोडरो छु. आउआ वाला जेतसिंधने महाराज विजेसीघे ठारथो. चांपावत तेहना बेटा गुणावल कडुजै छांडी आव्या छेः इस्यो रूप बणे रखो है: जैपुर मैं पिण मेवाड सरीषो विषो लागे छै. रावत जसुंतसिंघजी ने जैपुरमांहिथी परा काठ्या : सोधोकरजी Aho! Shrutgyanam

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