Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 122
________________ ५८ जैन साहित्य संशोधक परिशिष्ट [ खंड १ प्रथम गुणवाणीया प्रमुष ए आशिर्वचन कहे शरकरा वातुपात्र गृह नानाविधि ओषध दान शालाई आपवई करी अभयदाने आवारपणे छदं । हुया । यथोक्तः श्रीमज्जैन प्रवचन रहस्य प्रकाशिवचन गुण । श्री विजयानंद सूरीजयतु चिरं संघहितकर्ता | १| एहवई आशापुरी दत्तवर थकी स्व आयु नजीक जणी कर्म रोग टाळवा हेति धर्मरूप ओषय धैर्य घरी करता हुया । गछनी भलामणी उ० श्री हीरचंद्र ० उ० श्री वीजयराज ग० ने दीधी । संवनी हित शिक्षा श्री आचार्यनें कहावी | श्री गुरुने उ० श्री कुशलवर्धन, उ० श्री देवविमल ग० प्रमुख गितार्थ उत्तराध्ययन ( ११०-२ चउसरणि निझामणि चउद पूर्वनो सार नमस्कार करता सवी आयु ६९ वर्ष संपूर्ण दिन ३ अणसण आरानी सं० १७११ वर्षे आसाढ कृष्ण प्रतोपदई श्री अकवरपुर नगरई बालपाणि व्रतधारक जल थल चर तिर्यच जीव रक्षाकारक युग पर सम विरुद ग्राहक श्री गुरु हरिवचनाराधक सूरी श्री विजयानंदनो स्वर्ग हुआ । यथोक्त:-- शुद्ध प्रागवाद वंशाभ्र प्रभासनदिवाकरः । दद्यादानंद मानदः सद्गुरुः सततोदयः | १ | ६२ तत्पट्टे श्री विजयराज सूरी | तेनो गुज्जर देशि कडी नगरे श्रीमाली वृ० शाताई गोत्रि मणिकार अवटंके सा० खीमचंद तंद्रहिनी गमतादे पुत्र सं० १६७९ वर्षि जन्म, ने नांम कुछ रजी | सं० १६८९ वर्षि वजीर पुरई व्रत, नाम कुशलविजय | सं० १७०१ वर्षे चांपानेर नगर पंडित पद हुआ | सं० १७०४ वर्षे श्री सिरोही नगरें आचार्य पद हुओ | श्रीमाली वृद्धशाषा पा० वजियई पाट महोत्सव की वो | प्रा० सा० राउते पदोत्सव की | सं० १७०६ वर्षे श्री खंभात ( १११ - १ ) भट्टारक पद हुओ | श्री सूरीनई उपदेशि श्री अहिम्मदाबाद नगरे वालेला गोत्री चांपानेरी अवकि श्रीमाली वृ० शाखा दो० मनीया सुन दोसी शांतिदाशि दुर्भिक्षना योग थकी घणा प्राणी सीदाता जागी सं० १७२० वर्षे दुर्बल रंक संसारीने मास १९ पर्यंत वस्त्र अन्न वृत गुड खांड - काव्य:-- व्योम युग्म मिताब्द वाह शशधर मोज्भमाणमर्थ नानादेश दरौद्र दीन जनतान्नादि मदानावुभैः । सन्त्रागाररणांगणे निहतवान् दुर्भिक्ष विश्वविषं हाजापाटकमंडन: स जयति श्रीशांतिदासो भवः | १| अथ कवितः - गयों महा निर्मल चैत्र धुंधली दीठो...... मादरं न भीजवी आसुसाई मुई मेहली आसा | चाल्या महिना प्यार भुइ नर बहोत हुआ निरासा । विपरीत काल वीसोतरो प्राणिमात्र पोषण भरण शांतिदास मनीयासुत तसु कवी आया तोरे शरण || १॥ अर्बुद उपरि स० १७२५ वर्षे स्वनाम श्री शांति नाथनो ( १११-२ ) प्रासाद नापजाच्यो । पुनः श्री हमाराचल, तारणगिरि, आरासणि, नंदीय, राणकपुर, संखेश्वर, भीलडीक, एवं सप्त तीथेई जीर्णोद्धार कोषो । पुनः स्फाटिक श्री शांतिनाथ प्रमुख बिंब २१ श्राप्या । सं० १७४२ वर्षि श्री विजयराज सूरी स्वर्ग हुआ । ६३ तल श्री विजयमान सूरी | तेन दक्षिण देश बुहरानपुर नगर मा० ० दी० बावजी श्री श्री वीरां पुत्र सं० १७०७ वर्ष जन्म | सं० १९७१७ वर्षे मालपुरे व्रत | सं १७३६ वर्षे श्री सीरोही नगरई सा० धर्मसी वनराजि आचार्य पदनो उच्छव की । सं० १७४२ वर्षे नाइore नगरे गछ नायक पद हुओ । एहवई अणहिल्ल पाटण पासें संदर नगर सं० १७४९ वर्षे पं० नयविमल थकी संवीज्ञ मत हूआ। सं० १७७१ वर्षे श्री सामंद नगरे श्री विजयमान सूरी स्वर्ग हुआ । ६४ तलट्टे श्री विजय ऋद्धि सूरी । वृद्ध मरुधर देशिला नगरे श्री० ० ( ११२-१) लिंब गोत्रि सा० जसवंत स्त्री यसोदा तेहनों पुत्र सं० १७२७ बर्षे जन्म । सं० १७४२ वर्षे पिता सा जसवंत पुत्र सहित श्री रुकपुरे दक्षिा | सं. १७६६ वर्षे Aho! Shrutgyanam

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