Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 55
________________ Part I] COMPARATIVE STUDY. यथा वा पनेके मोन्तो समणब्राह्मणा... सन्निधि- सई वा सुणित्ता हवई से निग्गंध । तं कहामिति चे ? कारपरिभोगं अनुयुत्ता विहरन्ति--सेय्यथीदं अन्नसन्निधिं आयरिआह-निगंथस्स खलु इत्थीणं कुद्दुतरांस वा पानसन्निधिं ...... आमिससन्निधिं इति वा, इति एव- जाव विलविअसदं वा सुणमाणस्स बंभयारिस्स बिंभचेरे रूपा सन्निधिकारपरिभोगा पटिविरतो होति, इदं पिस्स संका वा कंखा वा... जाव . . . केवलिपण्णत्ताओ वा होति सीलस्मि । धम्माओ भंसिज्जा तम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं कुहूं___He should take recourse to the bor- तरंसि ... जाव सुणमाणो विहरेजा ders forests - (उ० XVI,8) पंतं सयणासणं भइत्ता। (उ• XV, 4) अपि च खो मातुगामस्स सदं सुणाति, तिरोकुड्डा पन्तं च सयनासनं ... एत बुद्धान सासनं । वा तिरोपाकारा वा हसन्तिया वा भणन्तिया वा गाय (ध. 160). न्तिया वा रोदन्तिया वा ... सो तदस्सादेति, तनिका(ii) A MONK'S ATTITUDE TO. मेति तेन च वित्ति आपजति, इदं पि खो ब्राह्मण ब्रह्मWARDS WOMAN. चरियस्स खण्डं पि छिदं पि वा सबलं पि कामासं पि; He is always to avord the company अयं वञ्चति ब्राह्मणो अपरिसद्धं ब्रह्मचरियं चरति संयुत्ता of women considering them to be dangeroas मेथुनेन संयोगेन न परिमुञ्चति जातिया जरामरणेन सोसंगो एस मणुस्साणं जाओ लोगंमि इत्थीओ। केहि परिदेवेहि दुक्खेहि . . . न परिमुञ्चति दुक्खस्माति जस्स एआ परिणाया सकडं तस्सं सामनी वदामि । ( उ० II, 16) (Ang. VII. 5th Vagga.) एअमादाय मेहावी पंकभूआउ इत्थीओ । That a Brahmin is inade not by नो ताहि विणिहणेना चरेजत्तगवेसए । mere birth but by his actions (उ० II,17) कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। Ananda the favourite disciple of कम्मुणा वइसो होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। Gotama Buddha asked the Buddha (उ० XXV,32) while he was on his death-bed how all monks should be have towards women न जच्चा बसलो होति न जच्चा होति ब्राह्मणो । the answer was. "You should shun their कम्मना वसलो होति कामना होति ब्राह्मणो ।। gaze" If that is not possible " you (सु० नि० 136 ct. 650-651) must watch yourself." " कथं मयं भन्ते मातुगामे पटिपज्जामाति । अदस्सनं न चाहं ब्राह्मण ब्रूमि योनिज मत्तिसंभव । (ध० 396) आनन्दाति । दस्सने भगवा सति कथं पटिपजितब्बं । If he has got mental defilements or if he is & man of bad conduct अनालापा आनंदाति | आलपन्तेन भन्ते कथं पटिपाज-then he is no Brahmin. and will not तब्बति । सति आनन्द उपट्टापेतब्बा ति | be saved from perdition on account of (Digh 16, 5.9) bis birth in a Brahmin family. Also we find the following कोहो अ माणो अ वहो अ जेसिं नो निरगंथे इत्थीर्ण कुटुंतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्ति- मोसं अदत्तं च परिग्गही अ। . तरंसि वा कुइ असई वा, रुइ असदं वा, गीअसई वा, ते माहणा जातिविज्जाविहिणा हसिअसई वा, थणि असई वा, कंदिअसई वा, विलविअ- ताई तु खित्ताई सुपावगाई ।। (उ.XII, 14) Aho! Shrutgyanam

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