Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 113
________________ अंक वीर वंशावलि. १४६३ वर्ष व्रत । सं. १४८३ वर्षे पं. पद । सं. रइं उपदेशि ज्ञानकोश ए लिषावई छई । साधु कहे अह्म १४९३ वर्षे वाचक पद । सं. १५०२ वर्षे सूरी पद। श्री पासि द्रव्य नहि अनि पुस्तक पिण ज्ञान कोश थकी सूरीई अजमरे नगर पार्श्वे वीठारपुरे श्री नेमि बिंब प्रति- गृहस्थ पासई मांगी वांची पाला ते गृहस्थनई दीजई यो । श्राविधि सुत्र-वृत्ति १ श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र-वृत्ति छई। ज्ञान द्रव्य पिण गृहस्थ जाणई । सांभली २, आचारप्रदीप ३, प्रमुष ग्रंथकारक | श्री सूरीनई बांण सा० लुको क्रोधी घर आव्या । एहवई सदेव्या दत्त घर थकी हस्त सिद्धि जाणवी । सं. १५११ ध्याने अवसरे उत्सवई जिन भक्ति जिन मंदिर वर्षे स्वर्ग हूओ ॥ १ ॥ लघु गुरुभाई श्री जयचंद्र सूरी बाजारि थयो । तिहां वांमभाग कपालि देव मंदिरनो ( ९३-१) प्रतिक्रमण गर्भहेतु १. बीसस्थानिकनो थांभ भागो । प्रभातिं कृणागिरि बाजारि कोइक हाटि विचारामृत संग्रह २, इत्यादि ग्रन्थकारक कुमुठीई गामि बेठौ । एतनि तिहां गुजराति संयद लखक मित्र मिल्यो । स्वर्ग हुया ।। ३ ।। ते पिण म्ले छनी पारसीना हिरफई वरख लिखई । से ५३ तत्पट्टे श्री लक्ष्मीसागर सूरी। पिण कह्यु सा लुका (९४-१) लखक : ए तुम्हारई २ श्री सोमदेव सूरी। कपालि क्या लगा हई। लुको कहि-देवमंदिरका थंभा ३ श्री सोमजय सूरी। लगा । ते साभली म्लेछ कहई-तुमार जे फकीर दुनीया श्री लक्ष्मीसागर सूरी तहनो नि. सं. १४६४ वर्षे छोडिक हुयं सा साहिचकी बंदगी करइ के, साहिब के हजूर जन्म हुओ । सं. १४७० वर्षे व्रत । सं. १४७९ मुक्तिमई बेटी, हे अल्ला अनंत ते जय अखंड हइ, वर्षे पं. पद । वि. सं. १५०१ वर्षि पाठक पद । स. असत्या नापाकीसे दुर हई । ते म्लेछ बचन सांभली १५०८ वर्षे आ. पद | सं. १५१५ वर्षे गछनायक सा लुकाने चितई म्दछ बुद्धि प्रगट हुई । सा • लुकानई पद । श्री सूरीना उपदेश थकी वागडदेशि गिरिपुर नगरें म्लछ धर्म प्यारा जांणी तिथे सयदई पीर हाजीनी आसो. साल्ह श्री गंभीरापासनो प्रासाद निपजाव्यो । पुनः म्नाय दीधी । अनि साढासत्तर दोकडा पिण गृहस्थे न मालव देशि धारनगर श्री गुरुना उपदेशी प्रा. व. सं. दीधा । तेहना क्रोध थकी म्लेछनी बुद्धि चित्त धरी । हलसिंहई सप्त धडी सुवर्ण सुकृति प्रासाद ईग्यार निप- सा लुको गृहस्थनई कहई-ए गुरु सावध उपदेजाव्या | एह व गुज्जराति अणहिल्ल पत्तनई जिन बिंबो- श कहई छई । जेह वचन थकी हिंसानो पोष हुई। स्थापक सा. लको प्रगट हुओ। निरबद्य वचननो उपदेश कही नहि छई । अनि साक लुकानी उतपत्ती कहि छई। साधु प्रति इम कहा-सावुनी जेम में पिण आगिमना यथा गुजर अणहिल्लाख्य पत्तने नुतन पाटकि प्रा. पुस्तक वार सात हिरव्या र तिहां श्राकनी कीयाई ३. धवेचा गोत्रे सा. लुंको एक सामान्य पणि रहि छई। जिन-पडिमा ने पाठ किहाई मई न दीली । अनि से पुनिमगछ गुरु संयोगई जैन लिपि शिख्यौ (९३-२) गई पिण नही . ते माटि पंद्री जीव ने केंद्री गणे वि. सं. १५२८ वर्षे ज्ञानकोशि जैन सिद्धान्त वार जीवनई नमई अनि ए ५ कद्रीयना इल थकी ( १.४.३) लिथ्या । ते सकल शानद्रव्य लेता थकां साडासत्तर दो- छ कायन। जीवनी विराधना हुई । तेह थकी जिन बिंब कडा रह्या लिखवाना । सा० लुको गृहस्थनें कहें साडा- आराधक नही । ए प्रासाद वित्र सर्व मिथ्या छ सत्तर दोकडा...शान पिण घणो लिख्य छ । शानद्रव्य । ते सांभली साधु कहा-सा, दुका । तुम्ह प्रत्यक्ष मांहि थकी काढी आप्यौ। तिवारे गृहस्थ कहै-सा लुका! पणि किम अनंत संसारी थाछा। श्री सिद्धांत तुम्हे जैन सुधर्मि छो, एतलो तुम्हने ज्ञान लाभ हूओ | द्रव्य थकी लिखावी साधु पोतानई भणवा सिद्धांतनी यत्न शालाई जाई साधुनई कहै तुम्हे श्रावकनई कहो-तुझा. करई । तिवारि ते द्रव्य नेश्राइं काहियांणो । तेह थकी Aho! Shrutgyanam

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