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अंक ३
वीर पशावलि. गलो कीधो छ । प्रत्याक्ष लीहालानओ समुह । दरें श्री मालि ज्ञाति नांणवट्टी साहीरुई श्री नववंडा पार्श्वतिणे समयई बि पोहरई मध्यानई श्रीगुरु अनि शिष्य नाथनो बिंब भराव्यो । वि०सं० ११७७ वर्षी श्री
हो आहारन अर्थि गया। तिणे सूक्ष्मर ब (?)दान नागुरी शाषा कविाणी । श्री अजित देव गुरु प्रति गरु दीधुं । ते आहार देखी सोमदेव शिष्य वार २ गुरु वाणि रंजित थको अणहिल्ल पत्तनाधीशः सो० श्री जयसाहमी दृष्टि करी संशाइं समझावई पिण गुरु संशाई न सिंह देव निरंतर त्रिणं प्रदिक्षणा देइ वांदेई । श्री सूरी समझ्या । तेतलि वणिक समझ्यो जे ए रुषी महा भा- पश्चिम दीसी देवकै पत्तनई श्री जिन शासनई शोमा ग्यनो स्वामी जांणी उतावलो आधी तत्काल सोमदेव कारक हूया १ अनि लघु गुरु भाई श्री बादिदेव सूरी रुघी प्रति बि हाथि उपाडी सेवंत्राना ढगला उपरि तेहना शिष्य श्री रामचंद्र सुरी, तिणि स्नात्र विधि बईसाड्यौ । एतले ते गृहस्थना पुन्यनई योगई ते से- प्रगट कीधी । यंत्राना समुहना ढिगला थकी रु० सोमदेवनी दृष्टिना सेहवई श्री मदेशी जीराउली तीर्थनी उत्पत्ती हुई। प्रभाव थकी ते व्यंतर नाठौ । एतलें वणिके साक्षात् आबूनी पासिं जीराउली गामइं घोसिरगोलि श्रे० प्रगटपणे सुवर्ण ढगलु दीठी । तिवारे ते गृहस्थे घणा श्री धांधल रहै छई । तेहनी गौ सेहली नदीनइं कांठई आग्रहे गुण निरुपनि श्री गुरुनई वीनती करी वि०सं०११ बोरदीन जाल मांटी साटे ६६ वर्षि रु० सोमदेवनइं श्री गुरुइं आचार्य (५९-२) झरई । संध्यासमयइं ते गौ वणिक घरै दूध न दीइं । तिपद देई श्री हेमचंद्र सूरी नाम दीधुं । वि० सं० ११६७ वारई ते बांधल गृहस्थ जाणइं जे कोई सीमई दोहीने वर्षि गुरु श्री देवचंद्र सूरी स्वर्ग हू ओ । एहवई अनेक दूध लीइ छ । तेहनी भ्रांती तेणे संघाते पुत्रने मोकल्यो। ग्रंथ कारक श्री मलयीगरीसूरी स्वर्ग हुओ। जिहां गौ चरई तिहां पृथ्वीनई ठिकाणि दूध करी गई ।
श्री भनिचंद्र तूरी जावजिव लगई छ विगायना नि- ते देषी पुत्र धरे आवी (६०--२) दूध झरण बात यम धारक श्री सूरीई सेरिट देसि प्रासाद चिंब प्रतिष्ठया। पिता प्रति कही । तिणइं धांधलई आश्चर्व जांणी ते दृद्ध सुमतादि चारित्रई समर्थ यतः
झरण भूमीका षणी। एतलई घणा कालनी श्री पास संविनमौलिविकृतीश्वसर्वा
मूर्ति प्रगट हुई । एतलई अधिष्ठायकै स्वप्न दीधो, ते स्तत्याज देहेप्यममः सदा यः ।
मुझनें जीरा उल्ली नगरई थाप्यो । तिवारई धांधलई प्राविद्विनेयाभिवृत्तपमाव:
साद नीपजावी महोत्सवें वि० सं० ११९१ वर्षि श्री प्रभागुणे यः किल गौतमोऽयं ॥ १ ॥ पाचने प्रासाद थाप्या। श्री अजितदेव सूरीइं प्रतिष्ठथा । अप्रहयेश ( १ १६८ ) मितेऽन्दे वणा दिन ताई श्री पार्श्वनाथनी भक्ति साचवतो श्रे० वा. विक्रमकालादिवंगत भगवान ।
धल सदगतीनों भजनार हुओ। ते श्री पार्श्व परमेश्वर जे श्रीमुनिचंद्रः मुनींद्रा
जीरापली नगरई रक्षा | सकल भक्ति लोकनी बांछाददातु भद्राणि संघाय ।। २ ।।
पूरक मारि उपद्रव निवारक सप्रभाव तीर्थ हुओ । ४१ सट्टे श्री आजितदेवसूरी । यत:--प्रबलपि कलिकाले लघु गुरु भाइ सक र वादी मुगट बिरूद धारक श्री __ स्मृतमपि यन्नाम हरति दुरितानि । वादि देव सूरि २ | ए बिहूं गुरु भाई । ते मध्ये बडा गुरु कामित फलानि कुरुते भाई त पट्टधर अनि लनु भाई ते गछनी मर्यादाना सार रा जयति जीरा उलीपार्थः ।। १ ।। संभालिना करणहार | वि०सं० ११६८ वर्षे निवृत्ति
इणि परि श्री उल्ली पाच उत्पत्तिः कुलिं श्री महेंद्र सरीना उपदेश थकी घोघा बि (६०-१)
पुन: वि० सं० ११९१ वर्षि दीली नगरें विल्हाती
Aho I Shrutgyanam