Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 105
________________ अंक ३] वीर वंशावलि. धरी | श्री देवेंद्र आवी साधवीने उपा) नांहनी शालाइं द्रव्य मांगई, तिवारई सो. भीमजीनई पुत्रइ खोटा आवी रह्या । तिवारी गृहस्थ माहो माही पूछई-जे नीकलची द्रव्ये नीपजावी डंड भरवानी चारनी आप्या तुम्हे गुरु वांदवानई कुण शालाई जास्यो ? ते सांभली । कही. परषी लीओ । भील कहि, इहां कुण पारखू । अन्य श्राद्ध कहई बिहु ए सूरी एक गुरूना शिष्य छई एहिज सानार छई । कारागार थकी काढी कहइंतेह थकी आप आपणुं चित्त प्रशन्न हुइ तिहां जाइ वंदना आ द्रव्यनी परिक्षा करी । तिवारई भीमजी चित्त करो । एबलई श्री विजयचंद्र सूरी तो पहेला थकीज वृद्ध स्यु विचारइं जे-कृत कर्म उदय आव्या छइं शालाई रया, एतलई विजयचंद्र सूरीना साधु समुदायनई अनि वली उदय आवइं, तओ हुं मिथ्या न कहुं । मनुष्ये वृद्धशालि कह्या, अनि श्री देवेंद्र सूरीना साधु एहQ जांणी, कही ए द्राम सकल खाटा छ । ते भीमजीसमुदायनइं, नांनी शालाई रह्या तह थकी श्रावके लघु- नु वचन चोर सांभली मनस्युं चिंतवइं जे एकतओ शालिक कया । एतले श्री विजयचंद्र थकी वि०सं० आपणा पुत्रमें झठो काधो, अनि आपि पण बंदीखान १३०१ वर्षि श्री वृद्धशाला नामि गछ जुदो हूओ । हवी रह्यो । इणि सोनी भीमजीइ किस्यु कीधुं ? तिवारई लघुशालिक श्री देवेंद्र सूरी पाल्हण पुरे श्री पाल्ह विहारी भीमजी कहई-मिथ्या कह्यानो माहरई नीयम छ । श्री पासने नमवा आव्या । तिहां तिणहीज प्रासादी दिन चार पिण तिमज अन्य मनुष्य मुखि सांभल्यु । सत्यप्रतिदीन अक्षत एक मुडा अनि सो मण सोपारी आवे वादी जाणी पल्लीपातेइं पांच वस्त्र पहिरावी गांमनो छ । एतलें जैन गृहस्थ घणो छई । श्री सूरी चउमासि कामदार थापी घणे आदरें घरे मुक्यो । श्रीगुरुकार्ति रह्या । तिहां विप (७८-१) र्षिने श्री गुरुइं सूरिपदे, हुई । इति सूरी उपदेशात् सत्ये सो० भीमजी संबध । श्री विद्यानंद सूरी नाम दीधो । अनी बीजा भीमषीने ( १९.१ ) पाठकपदे श्री धर्मकीर्ति नाम दीधो । श्री गुरुइ श्री। विद्यानंद सूरीने इडरगढिं श्री शांति दर्शननइं। श्री देविंद्र सूरीइं श्रीखभायत नयरि छ कर्मग्रंथ-सूत्र विहारनी आशा कही । श्री देवेंद्र सूरी खमायति आवी ___ अनि तेहनी टीका, सिद्धपंचासीका-सूत्र अने तेहनी चौमासी रह्या । श्री गुरु सदैव उपगारी पणि धर्म कथा टीका, श्राद्धदिनकृत्य-सूत्र अनि तेहनी टीका, पुनः कहै छै | एकदा गुरु वाणी रंजित थको श्री गुरु प्रति . भाष्य ३ तेइनी टीका; इत्यादि ग्रंथकारक श्री देवेंद्र सूरी श्री मालि सा० सोनी भीमजी वीनती कहइं--श्री गुरु - सत्यपुर नगरे वि. सं १३३४ वर्षि स्वर्ग हूओ । एहवे मुझने कृपा करी काइक हित शिक्षा कहो । तिवारी गुरु देवना योग यकी श्री गुजरातई बीजापुर नगरई कहई-सत्य वचन मुष थकी बोली मनुष्य जन्म सफल श्रीविद्यानंद सरी पिण दिन तेरनई आंतरइं स्वर्ग हूआ | कर ओ । ने सांभन्टी भीमजी मनस्युं विचारई जे सोनार तिवार छ मास लगणई गछ निराधार हुओ । पछी बडनओ व्यापार तो मिथ्या वचनना ज छई, पिण मुझस्युं के गछीक वृद्धशालिक श्री क्षेमकीर्ति सूरी प्रमुष गोत्रीक गुरुनु वचन किम लोपाई; एहवू मनि धारी गुरुमुखि सो. आचार्य मीली श्री पाल्हणपुर नगरि उ० श्री धर्मभीमजीई एह नियम लीवू जे मई सदाकालिं सत्य बोल, कीर्तिनई सूरी पद देइं श्रीधर्मघोष सूरी नामई थापना कीधी । तिणहीज अवसरि ते पिण असत्य नही । ते घणे यत्ने सत्यनीयम जालदीने पाट राषई । एकदा सोनी भीमजीनई महितटि चोरे ग्रह्यो। मासाद मंडपि गोमुख यक्षि कुंकुम वृष्णि कीधी । भीमजीनइं भील पूछई तुझ धरी केतलो द्रव्य छई ? ति एहवई वृद्धशाला बिरुदधारक श्री विजयचंद्र सूरी तत्पट्टे (७८-२)कारे सोनी भीमजी मनस्युं विचारीनें कहें छई श्री क्षेमकीर्ति सूरीइं श्री बृहत्कल्पनी टीका वि० सं० जे चार हजार सम्मनो घर वाघरो छई । भील तेंमलोज १३३४ वर्षि बहितालीस हज्जार नीपजावी । Aho I Shrutgyanam

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