________________
जन्मषि- दे. मज्यमंदिया यिनंदि । मस्वरेष- है भार्यदेव । सम्वविमटार-जिन्होंने तामिलनार के तिरुमलाइ, बानमा पर्वत आदि स्थानों
में कई मुनियों को, जो संभवतया उनके गुरु थे, मूर्तियां निर्माण कराई थी - समय लगभग ८ वीं-१० वीं शती ई के मध्य । [देसाई. ४२, ५६-५९; कंच. २९,३५-३८] तमिलदेश के विशेषकर मदुरा प्रदेश मे जिनधर्म का पुनरुवार करने वाले महान प्रभावकबाचार्य थे। दे. बार्य वजया पत्र। महासामन्त, रट्टबंसी,ने १०४. में एक जिनालय के लिए प्रभूत दान दिया था। संभवतया वह सौन्दति के पृथ्वीराम रटटवाली शाखा से भिन्न किसी अन्य शाखा का नरेश था। महापौरकालीन एक प्रसिद्ध दस्यु, ५.. चोरों का सरदार, बम्बु. कुमार के बाद से प्रभावित होकर उनके साथ ही, अपने साथियों सहित, मुनिदीक्षा लेनी और मधुरा के बन में तपस्या करके कल्याण लान किया। मथुरा के कंकाली टोला क्षेत्र में इन
तपस्वियों की स्मृति में ५०१ स्तूप निर्मित हुए बताये जाते है। अन्यता सुनारी-बीरबर हनुमान की जननी, बनम्बय (पवन कुमार या प्रभ
बन) की पत्नी, विद्याधर नरेश महेन्द्र की पुत्री और प्रहलाद की पुत्रवधु । सोलह पौराषिक महासतियों में परिगणित, पाक्षिक सुखीला, पतिव्रता नारीरला बनेककषियों ने उसकी करुण
कहानी चिषित की। असली -नाडोल के जिमषी चौहान नरेण आल्हपदेवकी रानी और
महाराज केल्हणदेव की जमनी । इस राजमाता ने ११६४ ई. में चंदेराव ग्राम के महाबीर बिनालय के लिए भूमि दान दिया था।
बहरादित्य- दे. अबटरादित्य प्र. एवं हि.कोमावबंदी बैन नरेश, न.
११...। प्रमुख. १५८] मटठोपवासमटार- दे. अष्टोपवासि भटार.
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष