Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 128
________________ २. माठ प्राचीन प्रसिद्ध वयाकरणियों में से एक, शायद प्रथम । (जैसाइ. १६२] ३. गोम्मटसार (ल. ९८१ ई.) के अनुसार पांच प्रसिद्ध पुरातन मिथ्यादृष्टियों में से एक-संशय-मिथ्यात्व का उदाहरण । [जैसाइ. १६२] ४. इस या इन्द्रराज, वेंगि के पूर्वी चालुक्यवंश के संस्थापक कुब्ज विष्णुवर्द्धन का कनिष्ट पुत्र, जयसिंह प्रथम का अनुण और विष्णबद्धन वि० (६६६.६७५ ६०) का पिता- ये सब जन थे। [शिसं. . १४३, १४४; iv. १००; एई. ix.६; vit. २५; भाइ. २८९; प्रमुख. ९४] ५-८. राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र प्र. (ल. ६५०६०), दन्तिवमंन का पुत्र और गोविंद प्र.का पिता था। इंद्र द्वि (ल. ७००-२० ई.) गोविंद प्र. का पौत्र, और कर्क का ज्येष्ठ पुत्र तथा दंति दुर्ग (ल. ७२०-७५८९०) का पिता था। इंद्र तृ. नित्यवर्ष रट्टकंदपं (९१४-२२ ई.) कृष्ण द्वि० का पौत्र एवं उत्तराधिकारी पा-ती. शांतिनाथ का विशेष भक्त था। इन्द्र चतुर्थ (९७३-९८२ ई०) राष्ट्रकूट वंश का अन्तिम नरेश पा, परम जन एवं परमवीर था-सल्लेखनापूर्वक श्रवणबेलगोल में मृत्यु का वरण किया, ९८२ ई. में। [भाइ. २९२-३०९; प्रमुख. ९७-११२; अल्तेकर.; जैशिसं.i. ३८, ५७, भू. ७९; i. १२४, १२७. १६४; iv ५५] । ९. राष्ट्रकूटों को गुजराती शाखा का गुजरायं इन्द्र, जो मूलशाखा के घवधारावर्ष का पुत्र, गोबिन्द तृ. प्रभूतवर्ष (७९३. ८१४ ई.) का अनुज तथा उसके द्वारा नियुक्त गुर्जरदेश का प्रान्तीमशासक, बमोषवर्ष नृपतंग का पचा एवं प्रारंभिक समय में अभिभावक, गुजरायं कर्कराज का पिता। [प्रमुख. ९९१०१; भाइ. २९९; बल्तेकर.; शिसं. iv. ५, ६९, ९७; V. १४, १५] १०. इन् या इन्द्रराव, जिसने, अपने मित्र अम्मइय के साथ, अपना महापुराण (९५९ ई.) के कर्ता महाकवि पुष्पबन्त को बन में बैठादेखकर उसले मेलयाटी नगर में चलने का बाग्रह ऐतिहाकिमप्तिकोश

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