Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 146
________________ बल्लि जैनमठ के बाचा,न. * सी ., ने कतिपय मूर्तिया बनवाकर स्थापित की थीं। दिखाई. ६९] उसमय- जगतसेठ के वंशज डालचन्द और उनकी विदुषी भार्या रतन कुवारि के पुत्र, तथा सवा शिवप्रसाद सितारेहिन्द (ल. १८५० ७०६.) के पिता, वाराणसी निवासी। [मुल. ३५५४ भंडारी- जोधपुर निवासी, महाराज मानसिंह के समकालीन, ल. १५... में, अलंकार-माशय नामक ग्रन्थ की रचना की थी, इनके भाई उदयचन्द भी अच्छे लेखक थे। [कृपाल, अप्रैस ८८, पृ ४० उत्तरवासक- बाबा महारक्षित के शिष्य ओर बास्सीमाता के पुष धावक उत्तरदासक ने ईसापूर्व १५. के लगभग मथुरा मे जिनमंदिर का तोरण बनवाया था। [शिसं. ii.४; एइ. १४] उत्तरासंग मट्टारक- मूलसंघ-सूरस्थगण-चित्रकटान्वय के कनकनन्दि भट्टारक के शिष्य, तथा भास्करनंदि, श्रीनदि एवं महनदि के गुरु, और उन मार्यपण्डित के प्रगुरु जिन्हें चालुक्य सोमेश्वर दि. के महामंडलेश्वर लक्ष्मरम मे पोषगुंड (हनगु) को अरसर-बसदि नामक जिनालय के लिए १०७४ ६० मे प्रभूत दान दिया या । देसाई.१०७-१०] उत्वलराम- दे. गुंज, मालवा का परमार नरेश, ल. ९७५६०। १. सोन्दति के रट्ट नरेम कात्तंबीर्य चतुर्ष के धर्मात्मा जैनमन्त्री बीषण (१२०४ ई.) का पिता। [शिसं iv. ३१८, ३१९] २. धोलका में ल. १९७५ है. में वादिदेवसूरि से सोमघर स्वामि की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराने वाला धर्मारमा श्रावक [कंच. २०६] उदयकरण- १. कविवर बनारसीदास (ल. १५८३.१६४३ ई.) के साथी, अध्यात्मरसिक विद्वान, जो निश्चयकान्त के प्रभाव मे पथभ्रष्ट हो गये थे-पाडे रूपचन्द ने इन लोगों का मिथ्याभिनिवेश दूर किया था। [2. अर्घकथानक] २. यनि शीलविजय (१६९१ ई.) के उल्लेखानुसार पोलकुण्डा के ओसवाल धनकुबेर देवकरणशाह के धर्मात्मा भ्राता । [जैसाइ. २३१] १३२ ऐतिहासिक व्यक्तिकोश


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