Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 166
________________ एचनूप- एचरस--- एबलदेवी एबले- fafeeder का unfवलंबी हैह्यवंशी राजा एचसूप ( प्रथम ) वह चालुक्य विक्रमादित्य षष्ठ (१०७६-१९२८ ई०) का सामंत था। [ देसाई. २१५, २१७, २१९, ३०४, ३०६, ३०७] एचभूप का पौत्र, महामंडेश्वर एचरस जो कलचुरि नरेश रायगरि सोदिदेव (११७१ ई०) का जिनभक्त सामन्त था । [देसाई. २१७, ३१७,३१८] १५२ १. होयसल युबराज एरेयंग महाप्रभु (ल. १०७०-११०० ई० ) की विदुषी एवं धर्मात्मा भार्या, युवराज्ञी एचलदेवी, बल्लाल प्र०, विष्णुवर्धन और उदयादित्य की जननी कुमारी शान्नले को पुत्रवधु बनाने का चुनाव उसी का था। बड़ी तेजोमयी, दयालु एवं दानशीला, रूपवती रमणीग्न थीं. आचार्य गोपनंदि उसके गुरु थे । [ प्रमुख. १३६; बेशिसं . १२४, १३७, १३८. ४९०, ४९३, ४९४; २१८, २६३, २९९, ३०१; iii. सिंघी आचार्य अजितसेन वादीभसिंह के गृहस्थ शिष्य और विष्णुवर्धन होयसल के कृपापात्र, धर्मात्मा बक्किसेट्टि की धर्मिष्ठ जननी । [जंशिसं . २७४ ] एचण्डमाकिति होयसल मरेशों के कौण्डिन्यगोत्री, जैनधर्मावलम्बी दण्डनायक डाकरस (प्रथम) की धर्मात्मा पत्नी, नाकण और मरि ऐतिहासिक व्यक्तिकोष ३०८, ३४७, ३९४, ४११ ; iv २७१] २. होयसल नरसिंह प्रथम ( ११४६-७३ ई०), उपरोक्न युवराशी के पौत्र की पट्टरानी और बल्लाल द्वि. की जननी, धार्मिक जैन नागे । [प्रमुख. १५६; जैशिसं. ६. ९०, १२४, ४९१; jii. ३७९, ३९४, ४११, ४४८, ४९६; iv. २७१, २८२] ३. एचलदेवि, जिसके गुरु नन्दिसघ-द्रविलमण - अरंगलान्वय के गुणसेन पण्डित (ल० १०६० ई०) ये सभवतया युवराशी एचनदेवि (न० १ ) से अभिप्राय हो, वह उसके प्रारंभिक काल के गुरु हों। १०५८-६० ई० के कई लेखों में इन गुणमेन का उल्लेख है। [जैशिसं । - १९२; एक. v. ९८ ] ४. सौन्दति के रट्टनरेश कार्तवीर्यं चतुर्थ (१९२०४ ई०) जो feat चक्रवर्ती की पुत्री थी, कलाचतुर विशाललोचना, सती और धर्मिष्ठ था । | जैसि. iii. ४४° ]

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