Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 164
________________ एक्कामोर बिषी एवं विरोषी। इसके तथा इसके अनुयायियों के सत्यापारों एवं प्रचार ने दक्षिण भारत में जैनधर्म को भारी अति पहुंचाई। वह बिज्जलकलचुरि (१९५६-६७६.)-, चालुक्य सोमेश्वर चतुर्ष (१९८२-८९ ई.) बोर कदम्ब कामदेव (११०१-१२०००)का समकालीन था-इन राजामों को प्रभावित किया ल. १२०.ई. के बब्लूर शि. ले. में उसके कार्यकलापों का विस्तृत वर्णन है। मेज. २८०.२८१: देसाई. ३९७, ४००, ४०२; जैक्षिसं. ii. ४३५; एई. v. २५] २. यह एकाग्तर रामय्यकलचरि नरेश बिज्जल दि.के साले और मन्त्री बस या बासवेश्वर का प्रधान शिष्य था। मूलत बसब बन पा, किन्तु राजा का विरोषी हो गया और उसने जैन धर्म छोड़कर वीरशैव मत को स्थापना की थी। [प्रमुख १२८] मागुडि में भव्य शान्तिनाथ-जिनालय बनवाने वाले और कदम्बनरेश बोपदेव के प्रधान जैन सामन्त शंकर के पिता बोपगावंड का पितृव्य, नण्डवंशी जैन सामन्त, ल. ११०. ई० । [जैशिसं. iii. ४००% प्रमुखः १३२] १. प्रथम, एक्कलदेव या एक्कलरस. उढरे का गंगवंशी जैन महामंडलेश्वर, जिसके शासनकाल में उसके जैन दण्डनायक बोप्पण के पुत्र दण्डनायक सिंगल ने ११२९ ई. में समाधिमरण किया था। [जैशिसं.li २९१; एक.viii.१४९; प्रमुख.१६९] २. एक्कलभूप या राजा एक्कल द्वि. भी परम जैन था, उसने उबरे में कनक-जिनालय निर्मापित करके अपने गुरु क्राणूरगणतिग्त्रिणिगच्छ के भानुकीति सिवान्तदेव को उसके लिए ११३९ 1.में प्रभूत दान दिया था। बह गंगमारसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था और चालुक्य सम्राट अगदेकमाल दि. (११३८-५०६०) का सामन्त था। [मेजे. १६४.१६५; एक. vili. २३३; जैशिसं: iii. ३१३; प्रमुख. १६९, १७०] ३. महामंडलेश्वर एक्कलरस तृतीय भी इसी वंश का जैम मरेश पा, जिसके नाम पर उसके दमनायक महादेव ने राजधानी उदरे में. ११९७१.में एरग-जिनालय बनवाया था, और राजा १५. ऐतिहासिक व्यक्तिकोश

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