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अनन्यचाय काड कवि, मन्मथ कोरवंजि-पक्षगान के रचयिता, ल. १०००ई० । अनन्तपास--- अन्हिलपुर (बुजरात) के पल्लीवाल दिय. जैन, बामनकवि के ज्येष्ठ पुत्र, कवि धनपाल पल्लीवाल (१२०४ ई०) के अग्रज, पाटीगणित के रचयिता । [ जैसाइ. ४७० ]
अनन्तपालय्य-मनेवेगंडे दण्डनायक, चालुक्य सम्राट त्रिभुवनमल्लदेव का जैन सामन्त तथा उसके अधीन एक बड़े प्रदेश का सूबेदार [जैशिसं. - २४३]
मनपंडित- कम कवि श्रीपति का मातृल, स्वयं विद्वान एवं कवि, वर्धमान ( १५४२ ई०) द्वारा विद्वत्स्तोत्र में स्मृत दे. अतप्प |
अमन्तप्प
अनन्तमती - आर्यिका, हुमड़वंशोत्पन्न, जिन्होंने १५४७ ई० में, काष्ठासंघ- नंदीतटगच्छ - विद्याधरगण रामसेनान्वय के म. विशालकीति के प्रशिष्य, भ. विश्वसेन के शिष्य, भ. विद्याभूषण से पार्श्व आदि जिनबिंबों की प्रतिष्ठा कराई थी। बड़ौदा के बाड़ी मोहल्ला के दिग. जैन मंदिर में उक्त लेखांकित पार्श्व प्रतिमा विराजमान है । अनन्तराज मर-बिलिकेरे के जैन राजा, और मैसूर नरेश इम्मडि कृष्णराज ओडेयर के सामन्त एव प्रधान अंगरक्षक राजा देवराज बरसु ( स्वर्ग १८२६ ई०) के प्रपितामह । [ प्रमुख. ३२५ ]
अनन्तराम बंध-वालियर निवासी मेहता औसवाल, जयपुर नरेश रामसिंह के दीवान, जिनमंदिर बनवाया, १८४३ ई० । [टंक. ]
अनन्त संवेव--- पूर्वीगंग नरेश, जिसके कृपापात्र जैन सेठ कष्णम नायक ने विज़गापटम जिले के भोगपुर स्थान में राजराजा जिनालय निर्माण कराके उसके लिए ११८७ ई० में, अन्य व्यापारियों की सहमति
से भूदान किया था। [ मेजे. २५३; प्रमुख. १९१]
अनन्तवीर्य- १. वृहद् या वृद्ध अनन्तवीर्य, इस नाम के सर्वप्रथम आचार्य और भट्टाकलङ्कदेव (६४० - ७२० ई०) के सर्वप्रथम टीकाकार जिनका उल्लेख सिद्धिविनिश्चय के टीकाकार अनन्तवीर्यं वि. (रविभद्र. शिष्य) ने किया है। इनका अनुमानित समय स. ७२५-४० ई० है । [शोधांक-१६ पृ. २०५: जैसो. १६८,१७७ ] २. अनन्तवीर्य वि., 'रविभद्र पादोपजीवि', उपलब्ध सिद्धिविनि
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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