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ई०) उपासकाचार अपरनाम अमितगति श्रावकचार, आराधना ( शिवार्यकृत प्रा. मूलाराधना का पद्यबद्ध सटीक संस्कृत अनुवाद), सामायिक पाठ, भावनाद्वात्रिंशिका, प्रभृति प्रसिद्ध ग्रन्थों के रचयिता । जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति सार्द्धद्वयद्वीप प्रज्ञप्ति तथा व्याख्या प्रज्ञप्ति के संस्कृत अनुवाद भी इन्होंने किये बताये जाते हैं । मालवा के परमार नरेश वाक्पतिराज मुंज (९७४-९७ ई०), सिंधुल (९९७-१००९६०) और भोजदेव ( १००९-५३ ई०), इन आचार्य के प्रश्रयदाता एवं प्रशंसक थे, वह उनकी राज्यसभा के एक विद्वत्रस्न थे, और राजधानी धारानगरी के जैन विद्यापीठ के एक प्रमुख आचार्य थे । उनके प्राय: सब ग्रन्थ प्रोढ़ संस्कृत में निबद्ध हैं, और प्रथम सातों ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुके हैं । इन आचार्य की गुरु परम्परा में क्रमश: सिद्धान्तपारगामी वीरसेन - देवसेनअमितगति प्र० - नेमिषेण- माधवसेन हुए, और शिष्य परम्परा में से शान्तिषेण - अमरसेन- श्रीषेण चन्द्रकीतिअमरकीर्तिगण ( ११९० ई०) हुए । इस प्रकार वह स्वयं माधवसेन के शिष्य और शांतिषेण के गुरु 1 बड़े प्रभावक एवं लोकसंग्राहक आचार्य थे । समय ल. ९७५-१०२५ ई० । २. अमितगति प्र०, जो माथुरसंधी वौरसेन के प्रशिष्य, ओर गत द्वि. के गुरु माधवसेन के प्रगुरु थे - समय ल. ९०० ई० । ३. अमितगति 'वीतराग', जो संस्कृत के 'योगसारप्राभूत' नामक आध्यात्मिक ग्रन्थ के रचयिता हैं संभव है कि न० २ से न. १ से अभिन्न हों ।
४. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति सार्द्धद्वयद्वीप प्रज्ञप्ति, आदि ज्ञान किन्तु अनुपलब्ध ग्रन्थों के रचयिता अमितगति संभव है, अभिन्न हों ।
५. भ. श्रीभूषणकृत पाण्डवपुराण (१६०० ई०) में स्मृत शब्दव्याकरणार्णव अमितगति । [ प्रवी.. ७१]
६. पं० गोबिन्द के पुरुषार्थानुशासन (ल. १५०० ई०) में जयसेन आदि पुरातन आचार्यों के साथ स्मृत अमितगति यति । [ प्रवी.. ८९ ]
ऐतिहासिक व्यक्ति कोष