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तपा'कल्याणमन्दिर स्तोत्र के टीकाकार गुणसागर के दादागुरु ।
[टंक:], संभवतया श्वे.।। 'समर भंगरी- जोधपुर के राज्यमन्त्री भानामडारी (१६२१ ई०) का पिता ।
[प्रमुख ३१०] 'अमरमुदगल गुरु- यापनीयसप-कुमिलिगण के महावीर गुरु के शिष्य ने ९वीं शती
ई०, में चिंगलपेट (मद्रास) के देशवल्लभ जिनालय का निर्माण
कराया था। [जैशिस iv ७०] अमरसिंह- या अमरसिंह गणि. गुप्तकालीन (५वीं शती ई.) जैन विद्वान,
सुप्रसिद्ध 'अमरकोश' के रचयिता -डा० मगलदेव शास्त्री प्रति अनेक अर्जन मस्कृतज्ञ विद्वानों का भी अनुमान है कि 'अमरकोष
कार जैन थे। [जैसी २८] अमरसिंह- १. करहल के चौहान राजा भोजराज का जिनभक्त यदुवंशी
मन्त्री, १४१४ ई० में रत्नमयो जिनबिंब का प्रतिष्ठा महोत्सव किया था। [प्रमुख २४९] २. मुगल मम्राट शाहजहाँ के अधीन शिवपुरी (म. प्र.) का राजा जिसके समय, १६२८ ई० मे कोलारम के जैन मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ था। [जैशिसं iv ५०६] ३. जोधपुर के जैन दीवान खिममी भंडारी का पुत्र, ल १७००
ई. [प्रमुख ३१०] 'अमरसिंह ठाकुर- माथुरान्वयी कायस्थों में शिरोमणि, भव्य श्रावक, जिनके प्रति
बोधार्थ भ अमलकीति के शिष्य भ. कमलकोति ने, ल. १५०० ई. में, देवसेनकृत 'तत्वमार' की सस्कृत टीका लिखी थी। यह ठक्कुर मतोष के पोत्र, ठक्कुर लखू (लक्ष्मण) के पुत्र, तथा श्रीपथपुर (बयाना) के निवामी थे। प० गोविन्द से पुरुषार्था
नुशासन भी इन्होंने लिखाया था। [प्रवी. i. ८७.८९] ममरसिंह बीमाल- भोपा, बूड़िया (अम्बाला के निकट) के निवासी थे। इनके
पिता केसरीसिंह ने १८.ई.के युद्ध में सिक्खों की ओर से अग्रेजों से लड़कर वीरगति पाई थी। अंग्रेजो द्वारा बूडिया पर अधिकार कर लिये जाने के बाद अमरसिंह महारनपुर आकर
ऐतिहासिक पक्तिकोष