Book Title: Jain Jyoti
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Gyandip Prakashan

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Page 81
________________ का शासक था, का प्रपितामह, सुग्णवाउंड का पितामह, नाम का पिता वीरवर अय्कण, जिसे एक मस्त जंगली हाथी को वश में करने के कारण राजा ने करिय-अय्कण उपाधि दी थी। सोम द्वारा मन्दिर आदि निर्माण की तिथि ११४२ ई० है, अतः अय्कण ल० १०७५ ई० । [ वैशिसं iii. ३१८; प्रमुख ९५; एक. iv. ९४-९५ ] कोंगात्व नरेश के सामन्त, मदुवंगनाड के राजा, किविर निवासी अय्य ने १२ दिन की सल्लेखना पूर्वक, १०५० ई० में, स्वर्गवास किया था । [ मेजे. ९५, १५०; जंशिसं. ॥. १८४] कल्याणी के उत्तरवर्ती चालुक्यवंश में तेल द्वि. का पौत्र, सत्याक्षय (९९७-१००९ ई०) का भतीजा, विक्रमादित्य पं. (१००९१३ ई०) का उत्तराधिकारी - केवल एक वर्ष राज्य करने वाला अय्यन द्वि., इसके पश्चात जयसिंह द्वि (१०१४-४२ ई०) राजा हुआ - समय १०१३-१४ ई०; इसके पूर्व भी इस वंश में एक अय्यन प्र राजा हो चुका था। [ भाइ ३१५; जैशिसं iii. ४०८ ] अय्यम अम्बरसङ्ग- गंग नरेश अरुमुनिदेव का श्वसुर, रानी गावब्बरसि का पिता, जनसामन्त, ल० १००० ई० । [जंशिसं ॥ २१३; प्रमुख. १७४ ] अय्यन महादेवी - १. अय्यण महादेवी प्र० वेंगि के पूर्वी चालुक्यवंश संस्थापक कुब्ज विष्णुवर्धन (६१५ ई०) की महारानी ने बंजवाड़ा की प्रधान जैन बसति के लिए मुमिनिकुंड ग्राम दिग. जैनगुरु कलिभद्राचार्य को भेंट किया था - संभवतया उक्त जिनालय की निर्माता भी वही थी । [ देसाई. १९] २. इसी वंश के विजयादित्य प्र० की रानी और विष्णुवर्धन चतुर्थ ( ७६४-९९ ई०) की जननी अम्मन महादेवी द्वि. ने ७६२ ई० में उपरोक्त दानपत्र की पुनरावृत्ति एवं नवीनीकरण किया [ भाइ २८९; प्रमुख. ९४-९५ मेजे २५१-२५२] ने अपने पिता नोलंब पल्लव नरेश महेन्द्र प्र० के साथ एक जैनमन्दिर के लिए, ९वी शती ई० में, कुछ दान दिये थे । [ देसाई. १५७ ], तदनंतर इस अय्यपदेव ने धर्मपुरी के जिनालय को एक ग्राम दान दिया था - इन पिता पुत्र के गुरु सेनगण के विजयसेन के शिष्य कनकसेन भटार थे [ देसाई. १६२] था । ऐतिहासिक व्यक्तिकोप अस्प अभ्यण अय्यप ૬૭

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