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२. नवाङ्गीटीकाकार के रूप में प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य, जिन्होंने २६ आगमिक टीकाएं रची थीं। स्वर्गवास १०७८ ई० । यह जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे । [ प्रभावक. ७७]
३. जयन्त विजयकाव्य (१२२१ ई०) के रचयिता श्वेताम्बर विवान ।
४. सन् १०३९ ई० में स्वर्गस्थ शान्तिसूरि के गुरु, संभवतया न० १ से अभिन्न । [ गुल. २४० ]
५. विदर्भ- नरेश ईल या ऐल (१०८५ ई०) के गुरु, संभवतया दिन. [ प्रमुख. २२३]
६. मलधारी, जो हर्षपुरीयगच्छ के जयसिंहसूरि के शिष्य थे, गुजरातनरेश कर्ण सोलंकी, शाकंभरी नरेश पृथ्वीराज चौहान, सौराष्ट्र के राबॅगर, आदि अनेक राजाबों द्वारा सम्मानित, प्रभावक श्वेताम्बराचार्य, जिन्होंने अनेक ब्राह्मणों को जनधर्म में दीक्षित किया था। उनके शिष्य हेमचन्द्र मलधारि ने १११३ ई० में 'भवभावना' लिखी थी। [टंक ; कंच. ६५]
७. नवाङ्गी टीकाकार की पांचवी पीढ़ी में हुए रुद्रपल्लीय गच्छ के श्वेताम्बराचार्य, विजयन्त- विजय काव्य (१२२१ ई० ) के रचयिता - उनके शिष्य देवभद्र का १२३९ ई० के एक सि. ले. में उल्लेख हुआ है । [टंक] सभवतया न० ३ से अभिन्न हैं । ८. प्रद्युम्नसूरि के शिष्य और घनेश्वर सूरि के गुरु श्वे. आचार्य, ल. ९७५ ई० [केच. २७] नं० १ से अभिन्न प्रतीत होते हैं । ९. युगप्रधान जिनेश्वरसूरि के प्रधान शिव्य विधिमार्गी अभयदेवसूरि । [ कैच. २०४ - ५ ]
अभयधर्म उपाध्याय - कविवर पं. बनारसीदास (१५०६-१६४१ ई०) के मित्र भानुचन्द्रयति के खरतरगच्छी गुरु । [टंक. ]
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१. महान वैयाकरणी दिगम्बराचार्य, देवनन्दि पूज्यपादकृत जैनेन्द्र व्याकरण की सर्वप्राचीन उपलब्ध एव ज्ञात टीका महावृत्ति (१२००० श्लो.) के रचयिता । अनुमानतः ८५० और १०५० ई० के मध्य किसी समय हुए । [शोधांक ४६ पृ. २२० १००-११६]
साद.
मनयनवि
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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