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तर (१८९० ६०), जादि । में हुआ । [ टंक; प्रका. जै. सा. ]
९. मुग्धबोधकर्ता पं. बोपदेव द्वारा धातुपाठ में स्मृत आठ प्राचीन वैयाकरणों में से एक संभवतया जैन मे
२. होयसल नरसिंह प्र. (११४६-७३ ई०) के प्रसिद्ध जैन मन्त्री हुल्लराज के अनुज । [ जेसिस. 1. १३५; मेजं. १४१]
३. जैतारण निवासी ओसवाल, जिसके पुत्र भानाभंडारी ने जोधपुर नरेश गजसिंह के समय में, १६२९ ई० में, कापर्दा में अतिभव्य पाश्वं जिनालय बनवाया था। [टंक. ]
अमरकीति- १. अमरकीर्तिगणि, अमरसूरि या महाकवि अमरकीर्ति माथुर
संधी दिगम्बराचार्य अमितगति द्वि. (९९० १०२० ई०) की शिष्य परम्परा में, क्रमशः, शान्तिषेण-अमरसेन श्रीषेण चन्द्रकीति के पश्चात हुए — संभवतया वह चन्द्रकीर्ति के कनिष्ठ सधर्मा एवं शिष्य थे । reer भाषा में उन्होंने नेमिनाथ चरित (११८० ई०), महाबीर चरित, यशोधर चरित, धर्मवरित टिप्पण, सुभाषित रत्ननिधि, धर्मोपदेश चूडामणि, ध्यानप्रदीप, पुरन्दरविधानकया और षट्कर्मोपदेशरत्नमाला नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। अन्तिम ग्रन्थ को रचना उन्होंने महाकांठा प्रदेश के गोधरानगर में उसके शासक बोलुक्य कृष्ण के राज्यकाल में, ११९९ ई० में, गुणपाल एवं चर्चिणी के पुत्र अम्बा प्रसाद नागर के हितार्थ की थी, जो ऐसा प्रतीत होता है कि, उनका संसारपक्षीय अनुज था। [ शोधांक- ५० पृ. ३६९७० ] २. महापण्डित अमरकीर्ति त्रैविद्य, जो 'शब्दवेधस' थे, कर्णाटक के दिगम्बराचायं थे, और संन्द्रक राजवंश में उत्पन्न हुए थे । वह धनन्जय नाममाना के भाष्य के रचयिता है, जिसमें अनेक पूववर्ती विद्वानों का स्मरण किया है, जिनमें पं० आशाधर अन्तिम है, अत: इनका समय ल. १२५०-१३०० ई० है । [ वही, पृ. ३७० ]
३. वर्धमान मुनि के दशभक्त्यादि महाशास्त्र (१५४२ ई०) में स्मृत एक पूर्वाचार्य जो निर्मलगुणाश्रय, शास्त्रकोविद एवं भट्टा
अमर
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
स्वर्गवास सोनीपत में १९०५ ई०
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