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rarटीका के कर्ता, अकलङ्क - साहित्य के ममेश, विशिष्ट अभ्यासी एवं तलदृष्टा व्याख्याकार, विद्यानन्ध के प्रायः समका लोन, समय न. ८००-२५ ई० । प्रभाचन्द्र और वादिराज द्वारा स्मृत । इनके शिष्य कुमारसेन के प्रशिष्य विमलचन्द्र का समय ल. ९००-३५ ई० है । अकलङ्ककृत लघीयस्त्रय तथा प्रमाणसंग्रह के टीकाकार भी संभवतया यही अनन्तवीयं हैं । [जैसो. १७६, १९९; शोधांक- १६; प्रवी. -१, ८३]
३. लघु अनन्तवीर्य, जो माणिक्यनंदि कृत परीक्षामुखसूत्र की प्रमेयरत्नमाला नामक टीका के कर्ता हैं टीका का अपरनाम परीक्षामुख- पंजिका है । यह टीका प्रभाचन्द्र ( १००९-५३ ई०) कृत प्रमेय-कमलमाखंड के संक्षेपसार के रूप में प्रस्तुत की गई है, और स्वयं उसकी न्यायमणिदीपिका नामक टीका के कर्ता अजितसेन पंडित का समय ल. ११७० ई० है । अतः लघु अनन्तवीर्य १०५० और ११७० ई० के मध्य किसी समय हुए थे । [शोषांक-१६]
४. अनन्तवीर्यं भट्टारक, जिनका उल्लेख १०७७ ई० के एक शि. ले. में अलङ्कसूत्र की वृत्ति के रचयिता के रूप में हुआ है, और जिनके पूर्व - अभिनन्दनाचार्य, कविपरमेष्ठि तथा विद्यदेव का उल्लेख हुआ है, और उपरान्त द्रबिड़संघ- नन्दिगण- अरुङ्गलास्वय के कुमारसेन, मौनिदेव, विमलचन्द्र, कनकसेन वादिराज तथा कमलभद्र का क्रमशः उल्लेख हुआ है- उक्त वर्ष में कमलभद्र को ही लेखोल्लिखित दान दिया गया था। संभवतया उपरोक्त न० ३ से अभिन्न हैं । [ जैशिसं. ॥ २१३; एक. viii. ३५; शोषांक - १६]
५. अनन्तवीर्य या अनन्तवीर्य्यय, जो बेलगोल निवासी वीरसेन सिद्धान्तदेव के प्रशिष्य तथा गोणसेन पंडित भट्टारक के शिष्य थे, बोर जिन्हें ९७७ ई० में रक्कस नामक राजा ने दान दिया था। [जैशिस - १५४; एक. i. ४; शोधांक-१६]
६. अनन्तवीर्य मुनि जिनका उल्मेस चामराजनगर की पापयंबसति के १११७ ६० के शि. ले. में विज्ञानम के मल्लिवेणव्रती
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष