Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 10 11 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 6
________________ जैनहितैषी - एक काम अभ्यास आदत या टेवके बिना अतिशय कठिन जान पड़ता है, परन्तु वह काम कठिन नहीं होता उसका अभ्यास डालना या उसे अपनी आदत बना लेना ही कठिन होता है । आदत या टेव पड़ी कि वह काम सुगम और स्वाभाविक हो जाता है । पानीमें डुबकी लगाना बहुत ही कठिन काम है, परन्तु आदत पड़ जानेसे वही एक मामूली बात हो जाती है और इस कारण लाखों आदमी डुबकी लगानेमें ही आनन्दानुभव करते हैं । इसी तरह आत्माकी उपासना, आत्मरमणता या धार्मिक जीवनका भी सारा दारोमदार टेव या आदत पर है। शराब पीनेवाले कहते हैं कि क्रेड नामकी शराबका प्याला जब सबसे पहले वे अपने मुँहके पास ले गये, तब ऐसा मालूम हुआ कि कै हुई जातीं है, परन्तु पीछे अभ्यास पड़ जानेपर उन्हें इस शराबके आगे और सब शराबोंका मज़ा तुच्छ मालूम होने लगा ! योगी जनोंको शहरके कोलाहल और ठाटवाटके पास जाना भी पसन्द नहीं आता, पर जिस एकान्तवाससे हम लोग घबड़ाते हैं उसमें उन्हें निःसीम आनन्द आता है । एक शहरके एक मीनारमें बहुत बड़ी घड़ी लगी हुई थी । एक पागल मनुष्य उसीके समीप रहता था । इस लिए ज्योंही घंटा बजता था त्योंही वह एक-दो - तीन- गिनने लगता था - यह बात उसकी आदतमें शामिल हो गई थी । एक बार घड़ी बिगड़ गई और घंटा बजना बन्द हो गया; तो भी कहते हैं कि वह पागल अपनी आदतके अनुसार ठीक घंटे पर एक - दो-तीन आदि गिनने लग जाता था ! एक निर्दोष मनुष्य बास्टाइलके किलेमें कैद कर दिया गया था । ५७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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