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कहता पर करता नहीं, मुंहका बडा लबार; काला मुंह ले जायगा, साहबके दरबार ! कहना मीही खांड है, करना बिखकी लोय; कहेनी त्युं रहेनी रहे, बिखका अमृत होय. जैसी बानी मुख कहे, तैसी चाले नाही;
मनुष्य नहीं को स्वान है, बांधे जमपुर यांही. ३ - (१) जे माणस कहे छे तेवु करतो नथी ते मुखनो लबाड छे. परमात्माना दरबारमा ते पोतानुं काळं मुख लइने जशे. (जैनोना 'फिल्मीषी देव'नी मान्यता साये आ विचार सरखाववा जेवो के.) . . (२) कहे, ए तो खांड खावा जेवू काम छे, पण कर ए तो विषनी लुगदी खावा जेवू कठीन काम छे. जे माणस कहेणी-- रहेणी एकसरखी राखे छे ते तो विषने पण अमृत करी शके छे. आवाक्यना बे अर्थ थइ शके. रहेणी--कहेणी बन्ने जेनामां होय तेवा पुरुषो, एटले के 'ज्ञानपूर्वक क्रिया' करनारा पुरुषो, एटले के ज्ञान, दर्शन अने चारित्र त्रणे जेनामा छे एवा पुरुषोने अमुक लब्धिओ, वगर इच्छाए ज, स्वाभाविक रीते उत्पन्न थाय छे, जेने प्रतापे विषयूँ अमृत पण थइ जाय ए काइ ताजुब थवा जेवू नथी. बीजो अर्थ एवो थाय के, एवा पुरुषो आगळ झेर जेवा शब्दो के बनावो आवे रहेने पण तेओ अमृत जेवा मानी ले, पण क्रोध के आत्मक्लेष न ज करे. . (३) जे माणस बोले काइ, ने चाले काइ, त्हेने 'माणस नहि पण 'कूतरो' समजो. तेवो माणस अही--आ दुनीआमां ज जमपुरी बनावे छे. आ बहु समजवा जेवी बाबत छे. सामान्य 'इच्छाओ' अथवा वासनाओ तो थोडा ज्ञानथी पण दुर थइ जाय