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कबीरने नीज घर किया, गलकट्टाके पास; करेगा सो पावेगा, तुं क्युं भया उदास ? एक हमारी शिख सुन, जो तुं हुवा है 'शेख';
करुं करूं तुं क्या कहे ? क्या क्या किया है देख. ९ बनावी गया अने शिष्यने कहेता गया के आम विमान बनावाय; तुं पण गरज होय तो आवी रीते हाथ-पगने श्रम अपीने विमान बनावजे, एटले मोक्षधाम पहोंची शकोश.
(८) कबीरजीए पोतानो रहेवास गलकट्टा लोकोनी पासे राख्यो हशे ते उपरथी कोइए पूछयु हशे के, हमे आवा पवित्र पुरुष थइने आवी अधम जगामां कम रहोछो ? त्हेने कबीरजी कहेछे के "करशे ते पामशे; एमां हे भाइ ! नाहक तुं केम उदास थाय छे ? " मतलब के गलकट्टा लोको जे पाप करशे ते रहेमने नडशे, एमां म्हने शुं ? बीजो अर्थ ए छे के, हुं आमनुं जोइने कुकर्म शीखीश तो हेनां फळ हुं भोगवीश, परन्तु तुं नकामो आवी हांशी करीने पापमां शुं काम पडे छे ? खराब लतामां न रहे( ए नियम सामान्य माणसे हशी कहाडवा जेवो नथी, मा महान गुणोने खीलवी महात्मा बनेलाने माटे एवा नियमनी कशी जरुर नथी. कारण के एमनी आसपास शुभ विचाररुपी हीरा-माणेकनो मजबुत कोट बंधायलो होय छे, जेने लीधे खराब वातावरण असर करी शकतुं नथी. बाकी सामान्य माणसने तो निर्दय के व्यसनी मनुष्योनी सोबतनुं वातावरण जरुर थोडंघणुं नडे ज. माटे म्होटा पुरुषो करे ते ज करवू एम न समजता, म्होटा पुरुषो पात्रता जोइने कहे ते ज करवू जोइए.
. (९) ओ शेख साहेब ! ओ गुरु महाराज ! आ गरीबडा कबीर एकजनी शिखामण सांभळवानी महेरबानी करशो ? गुरु