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अतिथि-सस्कृति पा अतिही वहां,
विनत होकर त्यों कर जोडके, वचन शाल्वपति-क्षितिपालसे, __ महिपतीश्वर यों कहने लगाः
" मम सुता अपने सुतके लिये ____ अयि महोदय ! सज्जनतालय !
अति कृपा कर स्वीकर लीजिये, __सकल सज्जनको मुख दीजिये." तब कहा उसनेः-- “ धरणीपते !
विगतराज्य, विचक्षु बना हुआइस तपोवनमै भज कृष्णको
कर रहा अपने दिन तेरहं. इस लिये चहता नहि हूं कभी,
दुख आय सुता यह आपकी;" सुजन और जनांपर डालना
नहि कभी अपना दुख चाहते.