Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 321
________________ ३ तीसरा सर्ग. उतार सारे पट भूषणादि नृपाल कन्या तरु-छाल धारे प्राणेश के सकुलमें समाई समुद्रका रूप लिया नदीने गृहस्थिनी के सब कर्म नीके लगी निभानेः गुरुलोक सेवा आनन्द उत्साह प्रमोद पूर्णा तपस्विनी हो करने लगी ये . प्रसन्न सासू सुसरे गये हो मन्तुष्ट त्यो आश्रमके निवासी आनन्दकी भू अपने बनाया प्रभाव से आश्रमको इसी ने. १७

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