Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 328
________________ 50sal.la TR . . --. y - .--. . - .-- . ४ चौथा सर्गः विपिनमें गये देखते हुए. विविध दृश्यको खूब दम्पती फल मिले वहां वन्य जा पके __धर लिये उन्हें तोड वृक्षसे. फिर जहां जहां सूख सूखके गिर पडी हुई डालियां मिली बस वहीं वहीं घूमधूमके __तुरतही उन्हें एक ठौर की • पहर तीन तो बीत यों गये, सकल वस्तुअं ठीक ठाक की. घर चलो चलें चित्त जो किया, ॐ अहह ! क्या हुआ एकवार ही. ' . - obs - . - .-. -. . - ... -.CJo -०८ - .

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