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तब सती वहां आगई, जहां सुतनुं थी घरी सत्यवानकी. जग गया तभी सत्यवान भी, उठ खडा हुआ शौर्य पा महा.
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'अयि प्रिये चले " "
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"नाथ हां चलो "
अति विलम्ब है आज हो गया.
विकल हो रहे तात होंगे, दुख उठारही मात होयगी "
कह, अरण्य से लाट ये चले
सुभग दम्पती, रात हो गई, नहिं तमिस्रा ध्यान भी किया, पहुंचही गये स्थानको सुखी.
मुनि वहां जमां हो रहे सभी श्वशुर नेत्रवान, प्रीत सास भी;
लख इन्हें भरे नेत्र वारिसे, पुलक देह रम्य छा गई,
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