Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 334
________________ 1321E31 HDAE Soon clots. मम पिता लखे पुत्रवान हो मम सुतास्यको सौख्य पामहा, वचन पूर्ण हो आपका दिया, प्रमुद हो मुझे, विश्व हो सुखी, शिथिल हो नहीं नारियां कहीं शुचि पतिव्रता धर्मसे कभी, अटल विश्वमें धर्मराज्य हो, भुवन मान्य हों आर्यशास्त्र ये." अमृतके भरे वाक्य ये सुने ___ मुदित हो गये धर्मराज भी; कह जिला गये सत्यवानकोः ___ “अयि पतिव्रते ! आर्य अङ्गने ! वचन लौटते धर्म के नहीं, ___ तव चिरायु हो प्राणनाथ भी यह बनासको मातृ भूमिको विमल दृश्यसे पूर्ण शीघ्र ही." ८० •w.soose RIALS.SCHESE

Loading...

Page Navigation
1 ... 332 333 334 335 336 337 338