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मम पिता लखे पुत्रवान हो
मम सुतास्यको सौख्य पामहा, वचन पूर्ण हो आपका दिया,
प्रमुद हो मुझे, विश्व हो सुखी, शिथिल हो नहीं नारियां कहीं
शुचि पतिव्रता धर्मसे कभी, अटल विश्वमें धर्मराज्य हो,
भुवन मान्य हों आर्यशास्त्र ये." अमृतके भरे वाक्य ये सुने ___ मुदित हो गये धर्मराज भी;
कह जिला गये सत्यवानकोः ___ “अयि पतिव्रते ! आर्य अङ्गने ! वचन लौटते धर्म के नहीं, ___ तव चिरायु हो प्राणनाथ भी यह बनासको मातृ भूमिको विमल दृश्यसे पूर्ण शीघ्र ही."
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