Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 326
________________ ANTASTEhshes VERY MA920R SrI NCP JOK 3.स 385 .८० SA तथापि बाला यह राजकन्या सारे मनोभाव छिपा रहोथी, अत्यन्त ही व्याकुल हो रहीथी, 'प्रसन्न हूं'पै दिखला रहीथी, मनारहीथी शत देवताको, . महेश मृत्युञ्जय ध्या रहोथी, • सुना रहीथी हरिको हियेसे ___“विनाश कीजे सब भीति मेरी उबार लीजे, कुछ ध्यान दीजे, __ हरे मुरारे जगदीश प्यारे । श्रीनाथ गोलोक-पते दयालो है लाज मेरी करमें तुम्हारे." यांही जरासा दिन आ गया था ____आज्ञा पिताकी गह सत्यवान, तैयार जाने वनको हुआ ज्यों लाने महात्मा समिधा वहांसे, CSACC २०. FOLIABoss

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